पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८१४

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रात आधी से ज्याद जा चुकी है कल की तरह आज भी इस लम्ये चौर्ड मकान के अन्दर सन्नाटा छाया हुआ है। भूतनाथ और बलभद्रसिह अपनी-अपनी चारपाई पर लेटे हुए हैं मगर नीद किसी की आँखों में नहीं है और दोनों का ध्यान उसी तिलिस्मी चबूतरे की तरफ है। कल की तरह आज भी उस चबूतरे वाले दालान में कन्दील जल रही है जिसके सबब से वह पत्थर वाला चबूतरा साफ दिखाई दे रहा है। भूतनाथ ने देखा कि कल की तरह आज भी इस पत्थर वाले चबूतरे का दर्वाजा खुला और उसके अन्दर से एक आदमी स्याह लबादा ओढे हुए निकला। धीरे-धीरे घूमता फिरता वह उस कमरे के दाजे पर पहुंचा जिसमें भूतनाथ और बलभद्रसिह आराम कर रहे थे। कमरे कादर्वाजाखुलने के साथ ही वे दोनों उठ बैठे और उस आदमी को कमरे के अन्दर पैर रखते हुए देखा। उस आदमी ने हाथ के इशारे से बलभदसिह को बैठने के लिए कहा और भूतनाथ को अपने पास बुलाया। भूतनाथ चारपाई के नीचे उतर पड़ा और अपना तिलिस्मीखजर, जोखूटी के साथ लटक रहा था,लेकर उस आदमी के पास गया। वह आदमी भूतनाथ को अपने साथ कमर के बाहर वाले दालान में ले गया और वहा से सीढी की राह नीचे उतरने के लिए कहा। भूतनाथ भी चुपचाप उसके साथ नीचे चला गया । यहा भी एक कन्दील जल रही थी और चारों तरफ सन्नाटा था। उस आदमी ने अपना चेहरा खोल दिया और भूतनाथ को अपनी तरफ अच्छी तरह देखने के लिए कहा। भूतनाथ सूरत देखते ही चौक पड़ा और बोला- है यह मैं किसकी सूरत देख । रहा हूँ। क्या धोखा तो नहीं है। आदमी-नहीं-नहीं कोई धोखा नहीं है मेमकुलचे कहने से शायद तुम्हारा शक जाता रहेगा। भूतनाथ- हाँ अब मेरा शक जाता रहा मगर आप यहा कहा? क्या मुझे किसी तरह का विचित्र हुक्म दिया जायगा ? या मुझे राजा साहब से माफी मागने की मोहलत ही न मिलेगी? आदमी-हा तुम्हें एक विचित्र हुक्म दिया जायगा मगर यह बताओ कि राजा साहब के बारे में तुमने क्या सुना है । वे कब तक यहा आयेंगे। भूत-राजा बीरेन्द्रसिह कल यहा अवश्य आ जायगे, आज हरकारे ने आ कर यह पक्की खबर जीतसिह को दी है! आदमी-( कुछ सोच कर ) यह तो बड़ी मुश्किल हुई हमारे लिए नहीं बल्कि तुम्हारे लिए। भूत-(कॉप कर ) सो क्या । मैने अब कौन सा नया अपराध किया है ? आदमी-नया अपराध किया तो नहीं,मगर करना पड़ेगा। भूत--नही नहीं मै अब कोई अपराध न करूगा जो कुछ कर चुका हूँ, उसीका कलक मिटाना मुश्किल हो रहा है । आदमी-मगर क्या किया जाय लाचारी है, अपराध तो करना ही होगा और सो भी इसी समय । भूत-(कुछ सोच कर ) भला यह तो बताइए कि वह अपराध है क्या और मुझे क्या करना होगा? आदमी-यह तो जानते ही हो कि बलभद्रसिह हमारा है। भूत-जी हा मगर इस समय तो मेरी जान बचाने वाला है। आदमी-येशक। भूत-तब आप क्या चाहते है? आदमी-यही कि इस समय बलभद्रसिह को बेहोश करके हमारे हवाले कर दो। हम तो उन्हें कल ही उठा ले गये होते मगर कल हमें निश्चय हो गया था कि तुम जाग रहे हो और लडने के लिए अवश्य तैयार हो जाओगे, इसलिए साचा कि पहिले तुम्ह अपना परिचय दे-दें तब यह काम करें जिसमें तुम्हारा दिल भी खुटक में न रहे। भूत-मगर यह तो बड़ी मुश्किल होगी। अच्छा कल राजा वीरेन्द्रसिह से उनकी मुलाकात करा लेने दीजिए। आदमी-यह नहीं हो सकता उन्हें हम आज ही ले जायेंग नहीं तो हमारा बुहत हर्ज होगा और उस हर्ज में तुम्हारा भी नुकसान है। भूत-हाय नुकसान और दुख भोगने के लिए तो में पैदा ही हुआ हूँ !न जाने मेरी किस्मत में निश्चिन्त होना भी बदा है या नहीं। राजा वीरेन्द्रसिह सुन चुके हैं कि भूतनाथ बलभद्रसिह को छुडा लाया है, अब अगर इस समय आप उन्हें ले जायगे और कल राजा बीरेन्द्रसिह उन्हें मुझसे मागेंगे तो क्या जवाब दूगा? आदमी--कह देना कि मै रात को सोया हुआ था न मालूम बलभद्रसिह कहा चले गए मुझे कुछ खबर नहीं आप अपने पहरे वालों से पूछिए। भूत-हा यदि आप न मानेंगे तो ऐसा ही करना पडेगा। आदमी-तो बस अब विलम्ब न करो झटपट जाओ और उन्हें बेहोश करके हमार पास ले आओ। देवकीनन्दन खत्री समग्र ८०६