पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८४१

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दि 1 मै आपको मेरी बातों का हाल क्योंकर मालूम हुआ? परददू-एक लौडी की जुबानी मालूम हुआ जा उस समय मनोरगा के पास खडी थी। मैं-ठीक है, मुझ विश्वास होता है कि आप मेरी सहायता करेंगे और किसी तरह इस अत से बाहर कर देंगे क्योंकि मनारमा के न रहने से अब मौका भी बहुत अच्छा है । वरदेवू–वेशक मै तुझे आफत से छुडाऊँगा,मगर आज ऐसा करने का मौका नहीं है मनोरमा की मौजूदगी में यह काम अच्छी तरह हो जायगा और मुझ पर किसी तरह का शक भी न होगा क्योंकि जाते समय मनोरमा तुझे मेरी हिफाजत में छोड़ गई है। इस समय मै केवल इसलिए आया हू कि तुझ हर तरह की बातें समझा-बुझाकर यहाँ से निकल भागने की तर्कीय बता दूं और साथ ही इसके यह भी कह दें कि तेरी मॉ दारागा की बदौलत जमानिया में तिलिस्म के अन्दर केंद है और इस बात की खबर गोपालसिह को नहीं है। मगर मैं उससे मिलने की तर्कीव तुझे अच्छी तरह बता दूंगा। वरदेवू घटे भर तक मेरे पास बैठा रहा और उसने वहाँ की बहुत सी बातें मुझे समझाई और निकल भागने के लिए जो कुछ तर्कीय सोची थी वह भी कही जिसका हाल आगे चल कर मालूम होगा साथ ही इसके बरदेयू ने मुझे यह भी समझा दिया कि मनोरमा की उँगली में एक अगूटी रहती है जिसका नाकीला नगीना बहुत ही जहरीला है किसी के बदन में कहीं भी रगड़ दने स बात की बात में उसका तेज जहर तमाम बदन में फैल जाता है और तब सिवाय मनोरमा की मदद के वह किसी तरह नहीं बच सकता। वह जहर की दवाइयों का (जिन्हें मनारमा ही जानती है) घाडे का पेट चीर कर और उसकी ताजी ऑलों में उनको रखकर तैयार करती है इनना सुनते ही कमलिनी ने रोक कर कहा हा हाँ यह बात मुझे भी मालूम है। जब मैं भूतनाथ के कागजात लेने वहां गई तो उसी कोठरी में एक घोड की दुर्दशा भी देखी थी जिसमें नानू ओर बरदेबू की लाश देखी अच्छा तब क्या हुआ? इसके जवाब में इन्दिरा ने फिर कहना शुरू किया बरदेयू मुझे समझा बुझाकर और बेहोशी की दवा की दो पुडियाएँ देकर चला गया और उसी समय से मैं भी मनोरमा के आने का इन्तजार करने लगी। दो दिन तक यह न आई और इस बीच में पुन दो दफे बरदेयू से बातचीत करने का मौका मिला। और सब बातें तो नहीं मगर यह मैं इसी जगह कह देना उचित समझती हू कि बरदेबू ने वह दवा की पुडियाए मुझे क्यों दी थीं। उनमें से एक तो वेहोशी की दवा थी और दूसरी होश में लान की। मनोरमा के यहाँ एक ब्राह्मणी थी जो उसकी रसोई बगती थी और उस मकान में रहने तथा पहरा देने वाली ग्यारह लौडियों को भी उसी रसोई में से खाना मिलता था। इसके अतिरिक्त एक ठकुरानी और थी जो मास बनाया करती थी। मनोरमा को मास खाने का शौक था और प्राय नित्य खाया करती थी।माम ज्यादे बना करता और जो बच जाता वह सब लौडियों नौकरों और मालियों में बॉट दिया जाता था। कभी-कभी मैं भी रसोई बनाने वाली मिसरानी या ठकुरानी के पास बैठ कर उसक काम में सहायता कर दिया करती थी और वह बेहोशी की दवा बरदेबू ने इसीलिए दी थी कि समय आने पर खाने की चीजों तथा मास इत्यादि में जहा तक हो सके मिला दी जाय। आखिर मुझे अपने काम में सफलता प्राप्तहुई अर्थात चौथे या पाँचवे दिन सध्या के समय मनोरमा आ पहुची और मास के बटुए में बेहोशी की दवा मिला देने का भी मौका मिल गया। रात के समय जब भोजन इत्यादि से छुट्टी पाकर मनोरमा अपने कमर में बैठी तो उसने मुझे भी अपने पास बुला कर बैठा लिया और बातें करने लगी। उस समय सिवाय हम दानों के वहाँ कोई भी न था। मनोरमा-अबकी का सफर मेरा बहुत अच्छा हुआ और मुझे बहुत सी बातें नई मालूम हो गई जिससे तेरे बाप के छुडाने में अब किसी तरह की कठिनाई नहीं रही। आशा है कि दाही तीन दिन में वह कैद से छूट जायगे और हम लोग भी इस अनूठ भेष को छोड़ कर अपने घर जा पहुचेंगे। मैं-तुम कहाँ गई थीं और क्या करके आई ? मनो-मैं जमानिया गई थी। वहाँ के राजा गोपालसिह की मायारानी तथा दारोगा से भी मुलाकात की। मायारानी ने वहाँ अपना पूरा दखल जमा दिया है और वहॉ की तथा तिलिस्म की बहुत सीबातें उसेमालूम हो गई है। इसीलिए अब वह राजा गोपालसिह को भी मार डालने का बन्दोबस्त कर रही है। मैं-तिलिस्म कैसा? के साथ ) क्या तू नहीं जानती कि जमानिया का खास बाग एक बड़ा भारी तिलिस्म है? मैं नहीं मुझे ता यह बात नहीं मालूम और तुमने भी कभी मुझे कुछ नहीं बताया ! यद्यपि मुझ जमानिया के तिलिस्म का हाल मालूम था और इस विषय की बहुत सी यातें अपनी मॉ से सुन चुकी थी मगर इस समय मनोरमा से यही कह दिया कि नहीं यह बात भी मालूम नहीं है और तुमने भी इस विषय में कभी कुछ नहीं मनोरमा (ताज्जुब चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १९ ८३३