पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८५०

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- जीतसिह और तेजसिह को अदब से सलाम करने बाद उसने अपना दाहिना हाथ जिसमें एक चीठी थी दर की तरफ बढाया और देवीसिह ने उसके हाथ से पत्र लेकर तेजसिह के हाथ में दे दिया। तेजसिह ने राजा वीरेन्द्रसिंह को दिया, उन्होंने उसे पढकर जीतसिह के हवाले किया और इसके बाद वीरेन्द्रसिह और तेजसिह ने भी वह पत्र पढा । जीत-(नकाबपोश से ) इस पत्र के पढ़ने से जाना जाता है कि खुलासा हाल तुम्हारी जुबानी मालूम होगा? नकाबपोश-( हाथ जोडकर ) जी हाँ। मेरे मालिकों ने यह अर्ज करने के लिए मुझे यहाँ भेजा है कि हम दोनों भूतनाथ तथा और कैदियों का मुकद्दमा सुनने के समय उपस्थित रहने की इच्छा रखते हैं और आशा करत है कि इसके लिए महाराज प्रसन्नता के साथ हम लोगों को आज्ञा देंगे। हम लोग यह प्रतिज्ञापूर्वक कहते है कि हम लोगों के हाजिर होने का नतीजा दख कर महाराज प्रसन्न होंगे। जीत-मगर पहिले यह तो बताओ कि तुम्हारे मालिक हैं कौन और कहा रहत है? नकाव-इसके लिए आप क्षमा करें क्योंकि हमारे मालिक लोग अभी अपने को प्रकट नहीं किया चाहते आर इसीलिए जब यहा उपस्थित होंगे तो अपने चेहरे पर नकाब आले होंगे। हाँ मुकद्दमा खतम हो जाने के बाद वे अपने को प्रसन्नता के साथ प्रकट कर देंगे। आप देखेंगे कि उनकी मौजूदगी में मुकदमा सुनने के समय कैस कैसे गुल खिलते हैं जिससे आशा है कि महाराज भी बहुल प्रसन्न होंगे। जीत-कदाचित तुम्हारा कहना ठीक हा मगर ऐसे मुकददमों में जिन्हें घरेलू मुकदमे भी कह सकत है अपरिचित लोगों को शरीक होने और बालने की आज्ञा महाराज कैसे द सकते है? नकाय-ठीक है महाराज मालिक है जा उचित समझे करें मगर इसमें भी काई सन्देह नहीं कि अगर उस समय हमारे मालिक लाग (केवल दो आदमी) उपस्थित न होंगे तो मुकद्दमे की वारीक गुत्थी सुलझ न सकेगी और यदि वे पहिले ही से अपने को प्रकट कर देंगे तो जीत--( तेजसिह स ) इस विषय में उचित यही है कि एकान्त में इस नकाबपोश सेवात-चीत की जाय । तेज-(हाथ जोडकर ) जो आज्ञा । इतना कह कर तेजसिह उठे और उस नकायपोश को साथ लिए हुए एकान्त में चले गए। इस नकाबपोश का देखकर सभी हैरान थे। इसकी सिपाहियाना घुस्त और बेशकीमत पौशाक. इसका यहादुराना ढग और इसकी अनूठी बातों ने सभों के दिल में खलबली पैदा कर दी थी खास करकै भूतनाथ के पेट में तो चूहे दौडने लगा और उसने इस नकाबपोश को असलियत जानने का ख्याल अपने दिल में मजबूती के साथ बाँध लिया था। यही कारण था कि जब थाडी देर बाद तेजसिह उन नकाबपोश से बाते करके और उसको साथ लिए हुए वापस आए तब सभों का ध्यान उसी तरफ चला गया और सभी यह जानने के लिए व्यग्र होने लगे कि देखें तेजसिह क्या कहते है। तेजसिंह ने अपन याप जीतसिह की तरफ देख कर कहा 'मेरे ख्याल से इनको प्रार्थना स्वीकार करने में कोई हर्ज नहीं है। यदि मान लिया जाय कि वे लोग हमारे साथ दुश्मनी भी रखते हो तो भी हमें इसकी कुछ परवाह नहीं हो सकती और न वे लोग हमारा कुछ बिगाड ही सकत है। तेजसिह की बात सुन कर जीतसिह ने महाराज की तरफ देखा और कुछ इशारा पाकर नकायपोश से कहा, 'खैर तुम्हारे मालिकों की प्रार्थना स्वीकार की जाती है। उनसे कह देना कि कल से नित्य एक पहर दिन चढने के बाद इस दवारी- खास में हाजिर हुआ करें। नकाबपोश ने झुकलर सलाम किया और जिधर से आया था उसी तरफ लौट गया। थोड़ी देर तक और यात-चीत होती रही जिसके बाद सब कोई अपने-अपने ठिकाने चले गए। केवल महाराज सुरेन्दसिह वीरेन्द्रसिह जीतसिंह तेजसिह और गोपालसिह रह गए ओर इन लोगों में कुछ देर तक उसी नकाबपोश के विषय मेंबात-चीत होतीरही। क्या क्या बातें हुई इसे हम इस जगह खालना उचित नहीं समझाते और न इसकी जरूरत ही देखते हैं। दसवां बयान दूरे दिन फिर उसी तरह का दारे खास लगा जैसा पहिले दिन लगा था और जिसका खुलासा हाल हम ऊपर के बयान में लिख आए है। आज के दर्यार में वे दोनों नकाबपोश हाजिर होने वाले थे जिनकी तरफ से कल एक नकायपोश आया था अस्तु राजा साहय की तरफ से कल ही सिपाहियों और चोबदारों को हुक्म मिल गया था कि जिस समय दोनों नकाबपोश आवे उसी समय यिना इत्तिला किए ही दर्यार में पहुंचा दिये जॉय। सही समय था कि आज दरबार लगने के कुछ ही देर बाद एक चोबदार के पीछे-पीछे वे दोनों नकाबपोश हाजिर हुए। देवकीनन्दन खत्री समग्र ८४२