पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८६९

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नकाव-जो आज्ञा, मै सुनाने के लिए तैयार हू। बीरेन्द्र-मगर वह सब हाल आप लोगों को कैसे मालूम हुआ, होता है और होगा? नकाव-(हाथ जोडकर ) इसका जवाब देन के लिए में अभी तैयार नहीं है, लेकिन यदि महाराज मजबूर करेंगे तो लाचारी है क्योंकि हम लोग महाराज को अप्रसन्न भी नहीं किया चाहते। वीरेन्द्र-( मुस्कुराकर ) हम तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध कोई काम करना भी नहीं चाहते। इतना कह के बीरेन्द्रसिह ने तेजसिह की तरफ देखा। तेजसिह स्वय उठकर महाराज सुरेन्द्रसिह के पास गये ओर थोड़ी ही दर में लौट आकर वोले चलिए महाराज बैठे हैं और आप लागों का इन्तजार कर रहे है। सुनते ही सब कोई उठ खडे हुए ओर राजा सुरन्दसिह की तरफ चले। उसी समय तेजसिह ने एक ऐयार राजा गापालसिह के पास भेज दिया। चौथा बयान राजा सुरेन्दसिह का दरवारे-खास लगा हुआ हे। जीतसिह,वीरेन्दसिह,तेजसिह और भैरोसिह वगैरह अपत खास ऐयारों के अतिरिक्त कोई गैर आदमी यहा दिखाई नहीं देता। महाराज की आज्ञानुसार एक नकाबपोश नै कुअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह का हाल इस तरह कहना शुरू किया नकाव-जब तक राजा गोपालसिह वहा रहे तब तक का हालत इन्होंने आप से कहा ही हागा अब में उसके बाद का हाल क्यान करूँगा। राजा गोपालसिह से विदा हो दानों कुमार उस वावती पर पहुथे। जव राजा गोपालसिह सभों को लिए हुए वहा से चले गये उस समय सवरा हो चुका था अतएव दोनों भाईजरूरी काम और प्रात कृत्य स छुट्टी पाकर बाग्ली के अन्दर उतर: निचली सीढ़ी पर पहुच कर आनन्दमिह ने अपने कुल कपडे उतार दिए और केवल लगोट पहने हुए जल के अन्दर कूद कचीचों-बीचर्न जा गोता लगाये। कहा जल के अन्दर एक छाटा सा चबूतरा था और चदूतर क वीचाबीच में लोहे की मोटी कडी लगी हुई थी। जल में जाकर उसी को आनन्दसिह ने उखाड लिया और उसके बाद जल के बाहर चले आए। बदन पोंछकर कपडे पहिर लिय लगोट सूखने के लिए फैला दिया और दोनों भाई सीढी पर बेठकर जल के सूखने का इन्तजार करने लगे। जिस समय आनन्दसिह न जल में जाकर वह लोहे की कडी निकाल ली उसी समय से बावली का जल लेजी के साथ घटन लगा, यहा तक कि दो घटे के अन्दर बावली खाली हो गई और सिदाय कीचड के उसमें कुछ भी न रहा और वह कीचड़ भी मालूम हाता था कि बहुत जल्द मूख जायेगा क्योंकि नीच की जमीन पक्की और सगीन बनी हुई थी, केवल नाममात्र का मिट्टी या कीचड़ का हिस्सा उस पर था। इसके अतिरिक्त किसी सुरग या नाली की राह निकल जाते हुए पानी में भी बहुत कुछ सफाई कर दी थी। बावली के नीचे वाली चारो तरफ की अतिम सीढी लगभग तीन हाथ के ऊची थी और उसकी दीवार में चारो तरफ चार दरवाजों के निशान बने हुए थे जिसमें से पूरय तरफ वाले निशान को दोनों कुमारों न तिलिस्मी खजर स साफ किया। जब उसके आग वाल पत्थरों को उखाड कर अलग किया तो अन्दर जान के लिए रास्ता दिखाई दिया जिसके विषय में कह सकते है कि वह एक सुरग का मुहाना था और इस ढग स बन्द किया गया था जैसा कि ऊपर बयान कर चुके है। इसी सुरग के अन्दर कुअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह को जाना था मगर पहर तक उन्होंने इस ख्याल से उसके अन्दर जाना मौकूफ रक्खा कि उसके अन्दर से पुरानी हवा निकल कर ताजी हवा भर जाय क्योंकि यह बात उन्हें पहिल से ही मालूम थी कि दरवाजा खुलने के बाद थोडी देर में उसके अन्दर की हवा साफ हो जायगी। पहर दिन बाकी था जब दोनों कुमार उस सुरग के अन्दर घुसे और तिलिस्मी खजर की रोशनी करते हुए आधे घण्टे तक यरायर चले गये। सुरग में कई जगह ऐसे सूराख बने हुए थे जिनमें से रोशनी तो नहीं मगर हवा तेजी के साथ आ रही थी और यही सबब था कि उसके अन्दर की हवा थोड़ी देर में साफ हो गई। आप सुन चुके होंगे कि तिलिस्मी बाग के चोथे दर्जे में (जहा के देवमन्दिर में दोनों कुमार कई दिन तक रह चुके हैं) देवमन्दिर के अतिरिक्त चारों तरफ चार मकान बने हुए थे * और उनमें से उत्तर तरफ वाला मकान गोलाकार स्याह पत्थर का बना हुआ तथा उसके चारो तरफ चर्खिया और तरह-तरह के कल पुर्जे लगे हुए थे। उस सुरग का दूसरा

  • देखिये नौवा भाग, पहिला बयान ।

चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २० ८६१