पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८८३

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हि दानों कुमारों ने अन्दाज से समझा कि अबकी दफे हम लोग चौदह या पन्द्रह घण्टे तक वरावर चलते रहे और जमानिया को बहुत दूर छाड आये। सुरग के बाहर निकल कर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह ने जिस सरजमीन में अपने को पाया वह एक बहुत ही दिलचस्प और सुहावनी घाटी थी। चारों तरफ कम ऊची सुन्दर और हरी-हरी पहाड़ियों के बीच में सरसब्ज मैदान था जिसके बीच में बरसाती पानी से बचने के लिए स्थान भी बना हुआ था। इस सरजमीन को इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह ने बहुत ही पसन्द किया और इन्द्रजीतसिह ने उन कैदियों की तरफ देख कर कहा 'अव तुम लोग अपने को आजाद और तिलिस्मी केदखाने से बाहर निकला हुआ समझो थोडी देर में हम लोग तुम्हें इस घाटी से बाहर पहुंचा देंगे फिर जहा तुम लोगों की इच्छा हो चले जाना।' इसके जवाब में इन कैदियों ने हाथ जोडकर कहा- अब हम लोग इन चरणों को छोड़ नहीं सकते! यद्यपि अपने दुश्मनों से बदला लेने के लिए हम लोग येताव हो रहे है परन्तु हमारी यह अभिलाषा भी आपकी कृपा के बिना पूरी नहीं हो सकती अस्तु हम लोग आपके साथ ही साथ राजा वीरेन्दसिह के दर्वार में चलने की इच्छा रखते हैं। दोनों कुमारों ने उनकी प्रार्थना मजूर कर ली और इसके बाद जो कुछ अनूठी कार्रवाई उन लोगों ने की दूसरे दिन बयान करुगा। इतना कहकर नकाबपोश चुप हो गया और अपने घर जाने की इच्छा से राजा साहब का मुह देखने लगा। यद्यपि महाराज इसके आगे भी इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह का हाल सुना चाहते थे परन्तु इस समय नकायपोशों को छुट्टी दे दना ही उचित जानकर घर जाने की इजाजत दे दी और दार बर्खास्त किया । दसवां बयान अब देखना चाहिए कि देवीसिह का साथ छोड के भूतनाथ ने क्या किया। भूतनाथ भी वास्तव में एक विचित्र ऐयार है। जिस तरह वह अपने फन में बड़ा ही तेज और होशियार है और जिस काम के पीछे पड़ जाता है उसे कुछ न कुछ सीधा किये बिना नहीं रहता उसी तरह वह निडर भी परले सिरे का कहा जा सकता है। यद्यपि आज-कल उसे इस बात की धुन चढी हुई है कि उसके दो-एक पुराने ऐब जिनके सबब से उसकी ऐयारी में धब्बा लगता है छिपे रह जाय और वह किसी न किसी तरह राजा वीरेन्द्रसिह का ऐयार बन जाय,मगर फिर भी ऐयारी के समय अपना काम निकालने की धुन में वह जान तक की परवाह नहीं करता। इस मौके पर भी उसने नकाबपोशों का पीछा करके जो कुछ किया उसके विषय में भी यही कहने की इच्छा होती है कि उसने अपनी जान को हथेली पर लेकर वह काम किया जिसका हाल अब हम लिखते है। सध्या होने में अभी घण्टे भर की देर है। उसी खोह के मुहाने पर जिसके अन्दर नकाबपोशों का मकान है या जिसमें भूतनाथ और देवीसिह नकाबपोशों का पता लगाते हुए गये थे हम दो नकाबपोशों को ढाल तलवार लगाये हाथ में हाथ दिये टहलते हुए देखते हैं । इन दोनों नकाबपोशों की पोशाक और नकाव साधारण थी और हाथ-पैरसे भी ये दोनों दुबले पतले और कमजोर मालूम पड़ते थे। हम नहीं कह सकते कि यह दोनों यहा कितनी देर से और किस फिक्र में घूम रहे हैं तथा आपुस में किस ढग की बातें कर रहे है, हा इनके हाव-भावसे इस बात का पता जरूर लगता है कि ये दोनों किसी के आने का इन्तजार कर रहे हैं। ऐसे ही समय में अचानक एक आदमी इनके पास आकर खड़ा हो गया जो सूरत शक्ल आदि से बिल्कुल उजड्ड और देहाती मालूम पड़ता था तथा जिसके हाथ पैर तथा चेहरे पर गर्द रहने से यह भी जान पड़ता था कि यह कुछ दूर से सफर करता हुआ आ रहा है। दोनों नकाबपोशों ने उसकी सूरत गौर से देखी और एक ने पूछा, 'तू कौन है और क्या चाहता है ? उसे देहाती ने नकाबपोश की बात का कुछ जवाय न दिया और इशारे से बताया कि यहा से थोड़ी दूर पर कोई किसी को मार रहा है। पुन एक नकाबपोश ने पूछा “क्या तू गूगा है ? इसका भी उसने कुछ जवाब न देकर फिर पहिले की तरह इशारे से कुछ समझाया और अपने साथ आने के लिए कहा। दोनों नकाबपोशों को विश्वास हो गया कि यह गूगा बहरा और साथ ही इसके उजड्ड तथा बेवकूफ भी है अस्तु एक नकाबपोश ने अपने साथी से कहा "इसके साथ चलकर देखो तो सही क्या कहता है ! दोनों नकाबपोश उसके साथ चलने के लिए तैयार हो गये और वह भी यह इशारा करके कि तुम्हें थोड़ी ही दूर चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २० ८७५