पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८९३

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नका-हा-हा सो तो मैखुद ही कह रहा हू क्योंकि तुमने उस समय अपने प्यारे लड़के को कुछ भी नहीं पहिचाना और रुपये की लालच ने तुम्हें मायारानी के तिलिस्मी दारोगा का हुक्म मानने पर मजबूर किया। ( अपने साथी नकाबपोश की तरफ देखकर ) उस समय इसकी स्त्री अर्थात् कमला की मा इससे रज होकर मेरे घर में आई और छिपी हुई थी और जिस चारपाई के पास मै बैठा हुआ लिख रहा था उसी पर उसका छोटा बच्चा अर्थात् कमला का छोटा भाई सो रहा था, उसकी मा अन्दर के दालान में भोजन कर रही थी और उसके पास उसकी बहिन अर्थात् भूतनाथ की साली भी बैठी हुई अपने दु ख दर्द की कहानी के साथ ही इसकी शिकायत भी कर रही थी, उसका छोटा बच्चा गोद में था मगर भूतनाथ भूत-(बात काटता हुआ) ओफ,ओफ ! बस करो मैं सुनना नहीं चाहता। तु तु तु तुम में इतना कहता हुआ भूतनाथ पागलों की तरह इधर-उधरघूमने लगा और फिर एक चक्कर खाकर जमीन पर गिरने के साथ ही बेहोश हो गया। चौदहवाँ बयान भूतनाथ के बेहोश हो जाने पर दोनों नकाबपोशों ने भूतनाथ के साथियों में से एक को पानी लाने के लिए कहा और जय वह पानी ले आया तो उस नकाबपोश ने जिसने अपने को दलीपशाह बताया था अपने हाथ से भूतनाथ को होश में लाने का उद्योग किया। थोड़ी ही देर में भूतनाथ चैतन्य हो गया और नकाबपोश की तरफ देख कर बोला “मुझसे बड़ी भारी भूल हुई जो आप दोनों को फसा कर यहॉ ले आया ! आज मेरी हिम्मत बिल्कुल टूट गई और मुझे निश्चय हो गया कि अब मेरी मुराद पूरी नहीं हो सकती और मुझे लाचार होकर अपनी जान दे देनी पडेगी।' नकाय-नहीं-नहीं भूतनाथ तुम ऐसा मत सोचो, देखो हम कह चुके हैं और तुम्हें मालूम भी हो चुका है कि हम लोग तुम्हारे ऐयों को खोला नहीं चाहते बल्कि राजा बीरेन्द्रसिह से तुम्हें माफी दिलाने का बन्दोबस्त कर रहे है। फिर तुम इस तरह हताश क्यों होते हो ? होश करो और अपने को सम्हालो। मू-ठीक है, मुझे इस बात की आशा हो चली थी कि मेरे ऐब छिपे रह जायगे और मैं इसका बन्दोबस्त भी कर चुक्षा था कि वह पीतल वाली सन्दूकडी खोली न जाय मगर अब वह उम्मीद कायम नहीं रह सकती क्योंकि मैं अपने दुश्मन को अपने सामने मौजूद पाता है। -ब. ताज्जुन की मत है कि दार में हम लोगों की कैफियत देख सुनकर भी तुम हमें अपना दुश्मन समझते हो ! यदि तुम्हें मेरी बातों का विश्वास न हो तो मैं तुम्हें इजाजत देता है कि खुशी से मेरा सिर काट कर पूरी दिलजमई कर १. लो और अपना शक भी मिटा लो। तब तो तुम्हें अपने भेदों के खुलने का भय न रहेगा? ल- (ताज्जुब से नकाबपोश की सूरत देख कर) दीपशाह वास्तव में तुम बडे ही दिलावर शेर मर्द रहमदिल और नेक आदमी हो । क्या सचमुच तुम मेरे कसूरों को माफ करते हो? नकाय-हॉ हॉ मैं सच कहता हूं कि मैने तुम्हारे कसूरी को माफ कर दिया बल्कि दो रईसों के सामने इस बात की कसम खा चुका हू भूत-वेदोनों कौन हैं? नका-जिनके कब्जे में इस समय हम लोग हैं और जो नित्य महाराज साहब के दर्वार में जाया करते हैं। भूत-क्या राजा साहब के दर्वार में जाने वाले नकाबपोश कोई दूसरे है आप नहीं या उस दिन दर्यार में आप नहीं थे जिस दिन आपकी सूरत देख कर जैपाल घबडाया था ? नकाय-हा बेशक वे नकाबपोश दूसरे हैं और समय-समय पर नकाब डालने के अतिरिक्त सूरतें भी बदल कर जाया करते हैं। उस दिन वे हमारी सूरत बन कर दर्बार में थे भूत-वे दोनों कौन है? नकाय-यही तो एक बात है जिसे हम लोग खोल नहीं सकते. मग तुम अपडाते क्यों हो? जिस दिन उनकी असली सूरत देखोगे खुश हो जाओगे! तुम ही नहीं बल्कि कुल दर्वारियों को और महाराजा साहब को भी खुशी होगी क्योंकि वे दोनों नकाबपोश काई साधारण व्यक्ति नहीं है। भूत-मेरे इस भेद को वे दोनों जानते हैं या नहीं? नकाव-फिर तुम उसी तरह की बातें पूछने लगे। - चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २०