पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८९९

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नकाय-भूतनाथ, नि सन्देह तुम धोखे में पड गये। उस औरत ने जा कुछ तुमसे कहा उसमें शायद ही दो-तीन बातें सच हों। भूत-( ताज्जुब से) सो क्या ! उसने कौन सी बातें सच कही थी कौन सी झूठ ?' नकाब-सो मैं नहीं कह सकता मगर आशा है कि शीघ्र ही तुम्हें सच-झूठ का पता लग जायगा ! भूतनाथ ने बहुत कुछ चाहा, मगर नकाबपोश ने उसके मतलब की कोई बात न कही। थोडी देर तक इधर-उधर की बातें करके नकाबपोश विदा हुए और जाती समय एक सवाल के जवाब में कह गये कि 'आप लोग दो दिन और सब करें, इसके बाद कुँअर इन्दजीतसिह और आनन्दसिह के सामने ही सब भेदों का खुलना अच्छा होगा क्योंकि उन्हें इन बातों के जानने का बड़ा शौक दूसरा बयान रात आधी से कुछ ज्यादे जा चुकी है। महाराज सुरेन्द्रसिह अपने कमरे में पलग पर लेटे हुए जीतसिह सेधीरे-धीरे कुछ वातें कर रहे हैं जो चारपाई के नीचे उनके पास ही बैठे है। केवल जीतसिह ही नहीं बल्कि उनके पास वे दोनों नकाबपोश भी बैठे हुए हैं जो दर में आकर लोगों को ताज्जुब में डाला करते हैं और जिनका नाम रामसिह और लक्ष्मणसिह है। हम नहीं कह सकते कि ये लोग कब से इस कमरे में बैठे हुए है या इसके पहिले इन लोगों में क्या-क्याबातें हो चुकी है, मगर इस समय तो ये लोग कई ऐसे मामलों पर बातचीत कर रहे हैं जिनका पूरा होना बहुत जरूरी समझा जाता है। बात करते-करते एक दफे कुछ रुक कर महाराज सुरेन्द्रसिह ने जीतसिह से कहा इस राय में गोपालसिह का भी शरीक होना उचित जान पडता है, किसी को भेज कर उन्हें बुलाना चाहिए।' 'जो आज्ञा कहकर. जीतसिह उठे और कमरे के बाहर जाकर राजा गोपालसिह को बुलाने के लिए चोबदार को हुक्म देने के बाद पुन अपने ठिकाने पर बैठकर बातचीत करन लगे। जीतसिह-इसमें तो कोई शक नहीं कि भूतनाथ आदमी चालाक और पूरे दर्जे का ऐयार है मगर उसके दुश्मन लोग उस पर बेतरह टूट पड़े है और चाहते है कि जिस तरह बने उसे बर्बाद कर दें और इसीलिए उसके पुराने ऐबों को उधेड कर उसे तरह-तरह की तकलीफें दे रहे हैं। सुरेन्द्र-ठीक है मगर हमारे साथ भूतनाथ ने सिवाय एक दफे चोरी करने के और कौन सी बुराई की है जिसके लिए उसे हम सजा दें या बुरा कहें ? जीत-कुछ भी नहीं और वह चोरी भी उसने किसी पुरी तीयत से नहीं की थी इस विषय में नानक ने जो कुछ कहा था महाराज सुन ही चुके हैं। सुरेन्द-हॉ मुझे याद है, और उसने हम लोगों पर अहसान भी कई किये हैं बल्कि यों कहना चाहिए कि उसी की बदौलत कमलिमी किशोरीलक्ष्मीदेवी और इन्दिरा वगैरह की जानें बची और गोपालसिह को भी उसकी मदद से बहुत फायदा पहुंचा है। इन्हीं सब बातों को सोच के तो देवीसिह ने उसे अपना दोस्त बना लिया था मगर साथ ही इसके इस बात को भी समझ रखना चाहिए कि जब तक भूतनाथ कामामला ते नहीं हो जायगा तब तक लोग उसके ऐबों को खोद- खोद कर निकाला ही करेंगे और तरह-तरह की बातें गढ़ते रहेंगे। एक नकाबपोश-सो तो ठीक ही है मगर सच पूछिए तो भूतनाथ का मुकदमा ही कैसा और मामला ही क्या? ' मुकदमा तो असल में नकली बलभद्रसिह का है जिसने इतना बड़ा कसूर करने पर भी भूतनाथ पर इल्जाम लगाया है। उस पीतल वाली सन्दूकडी से तो हम लोगों को कोई मतलब ही नहीं हो वाकी रह गया चीठियों वाला मुट्ठा जिसके पढ़ने से भूतनाथ लक्ष्मीदेवी का कसूरवार मालूम होता है सो उसका जवाब भूतनाथ काफी तौर पर दे देगा और साबित कर देगा कि वचीठियाँ उसके हाथ की लिखी हुई होने पर भी वह कसूरवार नहीं है और वास्तव में वह बलभद्रसिह का दोस्त है दुश्मन नहीं। सुरेन्द्र-(लम्बी सॉस लेकर) ओफ ओह इस थोडे से जमाने में कैसे-कैसेउलटफेर हो गए वेिचारे गोपालसिह के साथ कैसी धोखेबाजियों की गई । इन बातों पर जब हमारा ध्यान जाता है तो मारे क्रोध के बुरा हाल हो जाता है। जीत-ठीक है मगर खैर अब इन बातों पर काध करने की जगह नहीं रही क्योंकि जो कुछ होना था हो गया ! ईश्वर की कृपा से गोपालसिह भी मौत की तकलीफ उठा कर बच गए और अब हर तरह से प्रसन्न है. इसके अतिरिक्त उनके दुश्मन लोग भी गिरफ्तार होकर अपने पजे में आये हुए है। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २१ ८९१