पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९००

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Gr सुरेन्द्र-वशक एसा ही है मगर हमें कोई ऐसी सजा नहीं सूझती जा उनक दुश्मनों को दकर कलजा ठडा किया जाय और समझा जाय कि अब गोपालसिह के साथ बुराई करन का बदला ले लिया गया। महाराज सुरेन्द्रसिह इतना कर ही रहे थे कि राणा गापालसिंह कमरे के अन्दर आत हुए दिखाई पड़े क्योकि उनका डेरा इस कमरे से बहुत दूर न था। राजा गोपालसिह सलाम करके पलग के पास बैठ गए और इसके बाद दोनो नकाबपाशों स भी साहब सलामत करक मुस्कुराते हुए बोले- आप लोग कब से बैठे हैं ?" एक नकाबपोश-हम लोगों को आये बहुत देर गई। सुरेन्द्र-ये वेचारे कई घण्टे से बैठे हुए हमारी तबीयत यहला रहे है और कई जरूरी बातों पर विचार कर रहा है। गापाल-वे कौन सी बातें है? सुरेन्द्र-यही लडकों की शादी भूतनाथ का फैसला कैदियों का मुकदमा, कमलिनी और लाडिली के साथ उचित वर्ताव इत्यादि विषयों पर यातचीत हो रही है और सौचरर है कि किस तरह क्या किया जाय तथा पहिले क्या काम हा? गोपाल-इस समय में भी इसी उलझन में पड़ा हुआ था। मैं सोया नही था बल्कि भागता हुआ इन्हीं बातों का सोच रहा था कि आपका सन्देशा पहुंचा और तुरन्त उठकर इस तरफ चला आया। (नकाबपाशा की तरफ बताकर ) आप लोग ता अब हमारे घर के व्यक्ति हो रहे है अस्तु ऐस विचारों में आप लोगों को शरीक होना ही चाहिए। सुरेन्द-जीतसिह कहते हैं कि कैदियों का मुकदमा हान और उनका सजा देने के पहले ही दानो लडकों की शादी हा जानी चाहिए जिसमें कैदी लोग भी इस उत्सव को दराकर अपा जी जला लें और समझ ले कि उनकी बेईमारी हरामजदगी और दुश्मनी का नतीजा क्या निकला। साथ ही इसक एक यान का फायदा और भी होगा, अधांत कैदियों के पक्षपाती लोग भी जो ताज्जुब नहीं कि इस समय भी कहीइधर-उधर छिपे मन के लडडूबना रहे हों समझ जायेंगे कि अव उन्हें दुश्मनी करने की कोई जरूरत नहीं रही और न एसा करन ते काई फायदा ही है। गोपाल-ठीक है, जब तक दाना कुमारों की शादी न हो जायगी तब तकतर:-तरह के सुटके बन ही रहेंग! शादी हो जाने के बाद मेहमानों के सामने ही कैदियों का जहन्नुम में पहुधाकर दुनिया का दिखा दिया जायगा कि बुरे कर्मा का नतीजा यह हाता है। सुरेन्द-खैर तो आपकी भी यही राय तो है? गोपाल दशक सुरेन्द्र-(जीतसिह की तरफ दसकर ) तो अब हमें और किसी स राय मिलान की जरूरत नहीं रही आप हर तरह का यन्दोबस्त शुरू कर दें और जहाँ-जहाँ न्यौता भेजना हो भेजवा दे। जीत-जा आज्ञा। अच्छा अब भूतनाथ के विषय में कुछ से हो जाना चाहिए। गोपाल-हम लोगों में से कौन सा आदमी एसा है जो भूतनाथ को अहसान के बोझ स दया हुआ न हो ? बाकी रही यह बात कि जैपाल ने भूतनाथ के हाथ की चीठिया कमलिनी और लक्ष्मीदवी को दिखाकर भूतनाथ को दोषी ठहराया है सो वास्तव में भूतनाथ दोषी नहीं है और इस बात का सबूत भी वह दे देगा। सुरेन्द्र--हाँ तुमको तो इन सब बातो का सच्या-हाल जरूर ही मालूम होगा क्योंकि तुम्ही ने कृष्णाजिन्न बनकर उसकी सहायता की थी अगर वास्तव में यह दोपी होता तो तुम ऐसा करते ही क्यों ? गोपाल-बेशक यही बात है इन्दिरा का किस्सा आपको मालूम ही है क्योंकि मैंने आपको लिख भेजा था और आशा है कि आपको ये बातें याद होगी? सुरेन्द्र-हाँ मुझे बखूबी याद है बेशक उस जमाने में भूतनाथ ने तुम लोगों की बडी सहायता की थी बल्कि इसी सबब से उससे और दरोगा से दुश्मनी हो गई थी. अस्तु कब हो सकता है कि भूतनाथ लक्ष्मीदेवी के साथ दगा करता जो कि दरोगा से दोस्ती और बलभदसिह से दुश्मनी किए बिना हो ही नहीं सकता था !लकिन आखिर यह बात क्या है, वे चीठियाँ भूतनाथ की लिखी है या नहीं? फिर इस जगह एक बात का और भी खयाल होता है जो यह कि उस मुढे में दोनों तरफ की चीठियाँ मिली हुई है अर्थात् जो रघुबरसिह ने भेजी वे भी है और जो रघुबर के नाम आई थीं वे भी हैं। गोपाल-जी हाँ और यह बात भी बहुत से शकों को दूर करती है। असल यह है कि वे सब चीठियों भूतनाथ के हाथ की नकल की हुई है । वह रघुबरसिह जो दारोगा का दोस्त था और जमानिया में रहता था उसी की यह सब कार्रवाई है और यह सब विष उसी के बोये हुए है, वह बहुत जगह इशारे के तौर पर अपना नाम भूत' लिखा करता था। आपने इन्दिरा के हाल में पढा होगा कि भूतनाथ वेनीसिह बन कर बहुत दिनों तक रघुवरसिह के यहाँ रह चुका है और उन दिनों -- देवकीनन्दन खत्री समग्र ८९२