पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९०२

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६ जीत-(भूतनाथ और इन्ददेव से) आप लोग बहुत जल्द आ गये। इन्ददेव-हम दोनों इसी जगह बरामदे के नीचे वाग में टहल रहे थे इसलिए चोयदार नीचे उतरने के साथ ही हम लोगों से जा मिला। जीत-खैर, (गोपालसिह से ) हॉ तब? गोपाल-अपनी नेकनामी में धब्बा लगने और बदनाम होने के डर से भूतनाथ की सूरत देखना भी शेरसिह पसन्द नहीं करता था बल्कि उसका तो यही वयान है कि मुझे मूतनाथ से मिलने की आशा ही न थी और मै समझे हुए था कि अपने दोषों से लज्जित होकर भूतनाथ ने जान दे दी। मगर जिस दिन उसने उस तहखाने में भूतनाथ की सूरत देखी कॉप उठा। उसने भूतनाथ की बहुत लानत-सलामत करने के बाद कहा कि 'अब तुम हम लोगों को अपना मुँह मत दिखाओ और हमारी जान और आबरू पर दया करके किसी दूसरे देश में चले जाओ' । मगर भूतनाथ ने इस बात को मजूर न किया और यह कहकर अपने भाई से विदा हुआ कि चुप-चापौठे देखते रहो कि मै किस तरह अपने पुराने परिचितों में प्रकट होकर खास राजावीरेन्द्रसिह का ऐयार बनता है। बस इसके बाद मूतनाथ कमलिनी से जा मिला और जी जान से उसकी मदद करने लगा। मगर शेरसिह को यह बात पसन्द न आई। यद्यपि कुछ दिनों तक शेरसिह ने कमलिनी तथा हम लोगों का साथ दिया, मगर उरतेडरते। आखिर एक दिन शेरसिह ने एकान्त में मुझसे मुलाकात की और अपने दिल का हाल तथा मेरे विषय में जो कुछ जानता था कहने के बाद बोला, "यह सब हाल कुछ तो मुझे अपने भाई भूतनाथ की जुबानी मालूम हुआ और कुछ रोहतासगढ़ को इस्तीफा देने के बाद तहकीकात करने से मालूम हुआ मगर इस बात की खबर हम दोनों भाइयों में से किसी को भी नथी कि आपको मायारानी ने कैद कर रक्खा है। खैर अब ईश्वर की कृपा से आपछूट गये हैं इसलिए आपके सम्बन्ध में जो कुछ मुझे मालूम है आपसे कह दिया, जिसमें आप दुश्मनों से अच्छी तरह बदला ले सकें। अब मै अपना मुँह किसी को दिखाना नहीं चाहता क्योंकि मेरा भाई भूतनाथ जिसे मैं मरा हुआ समझता था,प्रकट हो गया और न मालूम क्या-क्या किया चाहता है। कहीं ऐसा न हो कि गेहूँ के साथ घुन भी पिस जाय अस्तु अब मैं जहाँ भागते बनेगा भाग जाऊंगा। हाँ अगर भूतनाथ जो कि रड़ा जिद्दी और नत्साही है किसी तरह नेकनामी के साथ राजा बीरेन्द्रसिह का ऐयार बन गया तो पुन प्रकट हो जाऊँगा।' इतना कहकर शेरसिह न मालूम कहाँ चला गया मैंने बहुत कुछ समझापा मगर उसने एक न मानी। (कुछ रुककर ) यहीसबब है कि मुझे इन सब बातों से आगाही हो गई और भूतनाथ के भी बहुत से भेदों को जान गया। जीत-ठीक है। (भूतनाथ की तरफ देख के) भूतनाथ, इस समय तुम्हारा ही मामला पेश है । इस जगह जितने आदमी हैं सभी कोई तुमसे हमदर्दी रखते हैं महाराज भी तुमसे बहुत प्रसन्न है। ताज्जुब नहीं वह दिन आज ही हो कि तुम्हारे कसूर माफ किए जायें और तुम महाराज के ऐयार बन जाओ, मगर तुम्हें अपना हाल या जो कुछ तुमसे पूछा जाय उसका जवाब सच-सच कहना और देना चाहिए। इस समय तुम्हारा ही किस्सा हो रहा है। भूलनाथ (खड़े होकर सलाम करने के बाद) आज्ञा के विरुद्ध कदापि न करूंगा और कोई बात छिपा न रक्यूँगा। जीत-तुम्हें यह तो मालूम हो गया कि सर्दू और इन्दिरा भी यहाँ आ गई है जो जमानिया के तिलिस्म में फंस गई थी और उन्होंने अपना अनूठा किस्साबड़े दर्द के साथ बयान किया था। भूतनाथ-(हाथ जोड़ के) जी हाँ, मुझ कम्बख्त की बदौलत उन्हें उस कैद की तकलीफ भोगनी पडी। उन दिनों बदकिस्मती ने मुझे हद्द से ज्यादे लालची बना दिया था। अगर मै लालच में पड कर दारोगा को न छोड देता ता यह बात न होती। आपने सुना ही होगा कि उन दिनों हथेली पर जान लेकर मैंने कैसे-कैसेकाम किये थे मगर दौलत की लालच ने मेरे सब कामों पर मिट्टी डाल दी। अफसोस, मुझे इस बात की कुछ भी खयर न हुई कि दारोगा ने अपनी प्रतिज्ञा के विरुद्ध काम किया अगर खबर लग जाती तो उससे समझ लेता। जीत-अच्छा यह बताओ कि तुम्हारा भाई शेरसिह कहाँ है? भूत-मेरे यहाँ होने के सबब से न मालूम वह कहाँ जाकर छिपा बैठा है। उसे विश्वास है कि भूतनाथ जिसने बड़े घड़े कसूर किए हैं कभी निर्दोष छूट नहीं सकता बल्कि ताज्जुब नही कि उसके सबब से मुझ पर भी किसी तरह का इलजाम लगे । अगर वह मुझे बेकसूर छूटा हुआ देखेगा या सुनेगा तो तुरन्त प्रकट हो जायगा जीत-वह चीठियों वाला मुट्ठा तुम्हारे ही हाथ का लिखा हुआ है या नहीं? देवकीनन्दन खत्री समग्र