पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९१२

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भूतनाथ इस सोच में घडी-घडी सर झुका लेता था कि मेरे पुराने ऐब जिन्हें मैं बडी कोशिश से छिपा रहा था अब छिपे न रहे क्योंकि इन नकाबपोशों को मेरारत्ती-रत्तीहाल मालूम है और दोनों कुमार इन सभों के मालिक और मुखिया है अस्तु इनसे कोई बात छिपी न रह गई होगी। इसके अतिरिक्त में अपनी आखों से देख चुका है कि मुझसे बदला लेने की नीयत रखने वाला मेरा दुश्मन उस विचित्र तस्वीर को लिए हुए इनके सामने हाजिर हुआ था और मेरा लड़का हरनामसिह भी वहा मौजूद था। यद्यपि अब इस बात की आशा नहीं हो सकती कि यह दोनों कुमार मुझे जलील और बेआबरू करेंगे मगर फिर भी शरमिन्दगी मेरा पल्ला नहीं छोड़ती। इत्तिफाक की बात है कि जिस तरह मरी स्त्री और लडके ने इस मामले में शरीक होकर मुझ छकाया है उसी तरह देवीसिह की स्त्री लडके ने उनके दिल में भी चुटकी ली देवीसिह और भूतनाथ की तरफ हमारे और ऐयारों के दिल में भी करीब-करीब इसी ढग की बातें पैदा हो रही थीं और इन सब भेदों को जानने के लिए वे बनिस्वत पहिले के अब और ज्यादे बेचैन हो रहे थे तथा यही हाल हमारे महाराज और गोपालसिह वगैरह का भी था। कुछ देर तक ताज्जुब के साथ सन्नाटा रहा और इसके बाद पुन महाराज ने दोनों कुमारों की तरफ देख कर कहा- सुरेन्द्र-ताज्जुब की बात है कि तुम दोनों भाई यहा आकर भी अपने को छिपाए रहे । इन्द्रजीत-(हाथ जोडकर ) मै यहा हाजिर होकर पहिले ही अर्ज कर चुका था कि हमलोगों का भेद जानन के लिए उद्योग न किया जाय, हम लोग मौका पाकर स्वय अपने को प्रकट कर देंगे। इसके अतिरिक्त तिलिस्मी नियमों के अनुसार तब तक हम दोनों भाई प्रकट नहीं हो सकते थे जब तक कि अपना काम पूरा कर इसी तिलिस्मी चबूतरे की राह से तिलिस्म के बाहर नहीं निकल आते। साथ ही इसके हम लोगों की यह भी इच्छा थी कि जब तक निश्चिन्त होकर खुले तौर पर यहा न आ जाय तब तक कैदियों के मुकदमें का फैसला न होने पावे क्योंकि इस तिलिस्म के अन्दर जाने के बाद हम लोगों को बहुत से नए-नएभेद मालूम हुए है जो (नकाबपोशों की तरफ इशारा करके) इन लोगों से सम्यन्ध रखते हैं और जिनका आपसे अर्ज करना बहुत जरूरी था। सुरेन्द्र-(मुस्कुराते हुए और नकाबपाशों की तरफ देख के) अब तो इन लोगों को भी अपने चेहरों स नकाब उतार देना चाहिए हम समझते है इस समय इन लोगों का चेहरा साफ होगा। कुअर इन्द्रजीतसिह का इशारा पाकर उन नकाबपोशों ने भी अपने-अपने चेहरे से नकाब हटा दी और खडे होकर अदब के साथ महाराज को सलाम किया। ये नकाबपोश गिनती में पाच थे और इन्हीं पाचों में इस समय वे दोनों सूरतें भी दिखाई पड़ीं जो यहा दार में पहिले दिखाई पड़ चुकी थीं या जिन्हें देख कर दारोगा और वेगम के छक्के छूट गए थे। अब सभों का ध्यान उन पाँचों नकाबपोशों की तरफ खिच गया जिनका असल हाल जानने के लिए लोग पहिले ही से बेचैन हो रहे थे क्योंकि इन्होंने कैदियों के मामले में कुछ विचित्र ढग की कैफियत और उलझन पैदा कर दी थी। यद्यपि कह सकते है कि यहा पर इन पाचों को पहिचानने वाला कोई न था भगर भूतनाथ और राजा गोपालसिह बडे गौर से उनकी तरफ दखकर अपने हाफजे (स्मरण-शक्ति) पर जोर दे रहे थे और उम्मीद करत थे कि इन्हें हम पहिचान लेंगे सुरेन्द्र-(गोपालसिह की तरफ देख के ) केवल हमी लोग नहीं बल्कि हजारों आदमी इनका हाल जानने के लिए बेताब हो रहे है अस्तु ऐसा करना चाहिए कि एक साथ ही इनका हाल मालूम हो जाय । गोपाल--मेरी भी यही राय है। एक नकाव-कैदियों के सामने ही हम लोगों का किस्सा सुना जाय तो ठीक है क्योंकि ऐसा होने ही से महाराज का विचार पूरा होगा। इसके अतिरिक्त हम लोगों के किस्से में वही कैदी हामी भरेंगे और कई अधूरी बातों को पूरा करके महाराज का शक दूर करेंगे जिन्हें हमलोग नहीं जानते और जिनके लिए महाराज उत्सुक होंगे। इन्द-(सुरेन्दसिह से) वेशक ऐसा ही है। यद्यपि हम दानों भाई इन लोगों का किस्सा सुन चुके है मगर कई भेदों का पता नहीं लगा जिनके जाने बिना जी बेचैन हो रहा है और उनका मालूम होना कैदियों की इच्छा पर निर्भर है। सुरेन्द्र-( कुछ सोचकर ) खैर ऐसा ही किया जायगा। इसके बाद उनलोगों में दूसरे तरह की बातचीत होने लगी जिसके लिखने की कोई आवश्यकता नहीं जान पड़ती। इसके घण्टे भर याद दर बर्खास्त हुआ और सब कोई अपने स्थान पर चले गए। कुअर इन्द्रजीतसिह का दिल किशोरी को देखने के लिए बेताब हो रहा था। उन्हें विश्वास था कि यहा पहुचकर उससे अच्छी तरह मुलाकात होगी और बहुत दिनों का अरमान भरा दिल उसकी सोहबत से तस्कीन *पाकर पुन उनके सात्वना। देवकीनन्दन खत्री समग्र ९०४