पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

LE कुमार हों यह भी हो सकता है। अबकी दफे का वहाँ जाना महाराज की इच्छा पर ही छोड देना चाहिए वे जिसे चाहें ले जायें। कम-बेशक ऐसा ही ठीक होगा। अब तिलिस्म के अन्दर जाने में आपत्ति ही काहे की है जब और जै दफे आप चाहेंगे हम लोगों को ले जायेंगे। कुमार-नहीं सो बात ठीक नहीं बहुत सी जगहें ऐसी है जहाँ सैकड़ों दफ़ जाने में भी हर्ज नहीं है मगर बहुत सी जगहें तिलिस्म टूट जाने पर भी नाजुक हालत में बनी हुई है और जहाँ बार यार जाना कठिन है तथापि मै तुम लोगों को वहाँ की सैर जरूर कराऊँगा। कम-मैं समझती हूँ कि मेरे उस तालाब वाले तिलिस्मी मकान के नीचे भी कोई तिलिस्म जरूर है। उस खून से लिखी हुई तिलिस्मी किताब का मजमून पूरी तरह से मेरी समझ में नहीं आता था तथापि इस ढग की यातों पर कुछ शक जरूर होता था। कुमार-तुम्हारा ख्याल बहुत ठीक है हम दोनों भाइयों को खून से लिखी उस तिलिस्मी किताब के पढने से बहुत ज्यादे हाल मालूम हुआ है इसके अतिरिक्त मुझे तुम्हारा वह स्थान पसन्द भी ज्यादे है और पहिले भी मै (जब तुम्हारे पास वहाँ था) यह विचार कर चुका था कि सब कामों से निश्चिन्त हो कर कुछ दिनों के लिये जरूर यहाँ डेरा जमाऊँगा परन्तु अब मेरा वह विचार कुछ काम नहीं दे सकता। कम-सो क्यों? कुमार-इसलिए कि अपर तुम्हारी बातें ठीक है तो अब वह स्थान तुम्हारे पति के अधिकार में होगा। कम ( मुस्कुराकर ) तो क्या हर्ज है मैं उनसे कहकर आपको दिला दूंगी। कुमार-मै किसी से भीख मांगना पसन्द नहीं करता और न उनसे लड़करर वह स्थान छीन लेना ही मुझे मजूर होगा। कमलिनी सच तो यों है कि तुमने मुझे धोखा दिया और बहुत बड़ा धोखा दिया ! मुझे तुमसे यह उम्मीद न थी। ( कुछ सोचकर ) एक दफे तुम मुझसे फिर कह दो कि सचमुच तुम्हारी शादी हो गई। इसके जवाब में कमलिनी खिलखिलाकर हँस पड़ी और बोली, 'हॉ हो गई। कुमार-मेरे सिर पर हाथ रख कर कसम खाओ। कम-( कुमार के पैरों पर हाथ रख के ) आपसे मै कसम खाकर कहती हूँ कि मेरी शादी हो गई। हम लिख नहीं सकते कि इस समय कुमार के दिल की कैसी बुरी हालत थी रज और अफसोस से उनका दिल बैठा जाता था और कमलिनी हँस हँस कर चुटकियों लेती थी। बडी मुश्किल से कुमार थोड़ी देर तक और उसके पास बैठे और फिर उठ कर लम्बी सॉसें लेते हुए अपने कमरे में चले गए। रात भर उन्हें नींद न आई। पाँचवॉ बयान महाराज की आज्ञानुसार कुँअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह के विवाह की तैयारी बड़ी धूमधाम से हो रही है। यहाँ से चुनार तक की सडकें दोनों तरफ जाफरी * वाली से सजाई गई हैं जिन पर रोशनी की जायगी और जिनके बीच में थोडी थोडी दूर पर बडे फाटक बने हुए है और उन पर नौबतखाने का इन्तजाम किया गया है। टट्टियों के दोनों तरफ बाजार बसाया जायगा जिसकी तैयारी कारिन्दे लोग बड़ी खूबी और मुस्तैदी के साथ कर रहे है। इसी तरह और भी तरह तरह के तमाशों का इन्तजाम बीच बीच में हो रहा है जिसके सबब से बहुत ज्यादे भीड-भाड होने की उम्मीद है और अभी से तमाशबीनों का जमावडा हो रहा है। रोशनी के साथ साथ आतिशबाजी के इन्तजाम में भी बड़ी सरगर्मी दिखाई जा रही है कोशिश हो रही है कि उम्दी से उम्दी तथा अनूठी आतिशबाजी का तमाशा लोगों को दिखाया जाय। इसी तरह और भी कई तरह के खेल तमाशे और नाच इत्यादि का बन्दोबस्त हो रहा है मगर इस समय हमें इन सब बातों से कोई मतलब नहीं है क्योंकि हम अपने पाठकों को उस तिलिस्मी मकान की तरफ ले चलना चाहते है जहा भूतनाथ और देवीसिह ने नकाबपोशों के फेर में पड़कर शर्मिन्दगी उठाई थी और जहा इस समय दोनों कुमार अपने दादा पिता तथा और सब आपुस वालों को तिलिस्मी तमाशा दिखाने के लिए ले जा रहे हैं। सुबह का सुहावना समय है और ठडी हवा चल रही है। जगली फूलों की खुशबू से मस्त भई सुन्दर-सुन्दर रंग-बिरगी खूबसूरत चिडियाएँ हमारे सर्वगुण सम्पन्न मुसाफिरों को मुबारकबाद दे रही है जो तिलिस्म की सैर करने की नीयत से मीठी-मीठी बातें करते हुए जा रहे है।

  • पीला फूल

देवकीनन्दन खत्री समग्र ९०८