पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६ वीरेन्द-और ऐसा होने से वह तिलिस्म एक दफे नया मालूम पडता । इन्द्र-यह चुनारगढ वाला तिलिस्म साधारण नहीं बल्कि बहुत बड़ा है। चुनारगढ नौगढ विजयगढ और जमानिया तक इसकी शाखा फैली हुई है। इस वगले को इस बहुत बडे और फैल हुए तिलिस्म का केन्द्र समझना चाहिए बल्कि एमा भी कह सकत हैं कि यह क्गला तिलिस्म का नमूना है । थाडी दर तक दालान में खड़ इसी किस्म की बातें होती रही और इसक वाद समों का साथ लिए हुए दोनों कुमार बॅगल के अन्दर रवाना हुए। सदर दरवाजे का पर्दा उठा कर अन्दर जाते ही य लोग एक गोल कमरे में पहुँचे जा भूतनाथ और देवीसिह का देखा हुआ था। इस गोल और गुम्बजदार खूबसूरत कमरे की दीवारों पर जगल पहाड और रोहतासगढ़ की तस्वीरें बनी हुई थीं। घडी-घडी तारीफ न करक एक ही दफ लिख देना ठीक होगा कि इस बगल में जितनी तस्वीरें दखने में आई सभी आला दर्जे की कारीगरी का नमूना थीं और यही मालूम होता था कि आज ही बनकर तैयार हुई है। इस राहतासगढ की तस्वीर को देखकर सव काईबड प्रसन्न हुए और राजा वीरेन्दसिह न तेजसिह की तरफ देखकर कहा राहतासगढ किले और पहाडी की बहुत ठीक और साफ तस्वीर बनी हुई है। तेज-जगल भी उसी ढग का बना हुआ है.कहीं-कहीं ही फक मालूम पडता है नहीं तो बाज जगहें तो ऐसी वनी हुई है जैसी मैने अपनी आखों से देखी हैं। (उगली का इशारा करके) देखिये यह वही कब्रिस्तान है जिस राह से हम लोग रोहतासगढ के तहखाने में घुसे ये। हाँ यह देखिए वारीक हरफों में लिखा हुआ भी है तहखान में जान का थाहरी फाटक। इन्द--इस तस्वीर को अगर गौर से दखेंगे तो वहाँ का बहुत ज्यादे हाल मालूम होगा। जिस जमान में यह इमारत तयार हुई थी उस जमान में वहाँ की और उसके चारा तरफ की जैसी अवस्था थी वैसी ही इस तस्वीर में दिखाई है आज चाह कुछ फर्क पड गया हा । तेज-बशक ऐसा ही है। इन्द्र--इसके अतिरिक्त एक और ताज्जुब की बात अर्ज कगा। धीरेन्द्र-वह क्या ? इन्द्र-इसी दीवार में स वहाँ ( रोहतासगढ) जाने का रास्ता भी है। सुरेन्द्र-वाह-वाह | क्या तुम इस रास्ते का खोल भी सकते हा? इन्द्र-जी हाँ हुन लाग इसम बहुत दूर तक जाकर घूम आय है। सुरेन्द-यह भद तुम्हें क्योंकर मालूम हुआ? इन्द्र-उसी रिक्तगन्ध की बदौलत हम दोनों भाइयों का इन सब जगहा का हाल और भदपूरा-पूरा मालूम हो चुका है। यदि आज्ञा हो तो दर्वाजा खोलकर मै आपका रोहतासगढ के तहखाने में ले जा सकता हूँ। वहाँ के तहखाने में भी एक छोटा सा तिलिस्म है जो इसी बडे तिलिस्म स सम्बन्ध रखता है और हम लोग उस खोल या तोड भी सकते है परन्तु अभी तक एसा करन का इरादा नहीं किया। सुरन्द्र-उस रोहतासगढ वाले तिलिस्म के अन्दर क्या चीज है ? इन्द-उसमें केवल अनूठे अद् मुत आश्चर्य गुण वाले हर्वे रक्खे हुए हैं उन्हीं हरवों पर वह तिलिस्म धा है। जैसा तिलिरमी खजर हम लोगों के पास हे या जैस तिलिस्मी जिर वखार और हरचर्चा की बदौलत राजा गोपालसिह ने कृष्णाजिन्न का रूप धरा था वैसे हरबों और असवार्यों का ता वहाँ ढेर लगा हुआ है हॉ खजाना यहाँ कुछ भी नहीं है। सुरेन्द्र-ऐसे अनूठे हर्वे खजाने से क्या कम है? जीत-वेशक !(इन्द्रजीतसिह स) जिस हिस्से का तुम दोनों भाइयों न तोडा है उसमें भी तो ऐस अनूठ हरवे होंगे? इन्द-जी हाँ मगर बहुत कम है ? वीरेन्द-अच्छा यदि ईश्वर की कृपा हुई ता फिर किसी मौके पर इस रास्ते से रोहतासगढ़ जाने का इरादा करेंगे। (मकान की सजावट और परदों की तरफ देखकर) क्या यह सब सामान कन्दील पदें और बिछावन वगैरह तुम लोग तिलिस्म के अन्दर से लाए थे? इन्द्र-जी नहीं जब हम लोग यहाँ आए ता इस बॅगले को इसी तरह सजा-सजाय पाया और तीन-चार आदमियों को भी देखा जा इस बॅगले की हिफाजत ओर मेरे आने का इन्तजार कर रहे थे। सुरेन्द्र-(ताज्जुब से) वे लोग कौन थे और अब कहाँ है? इन्द-दरियाफ्त करने पर मालूम हुआ कि वे लो। इन्द्रदेव के मुलाजिम थे जो इस समय अपने मालिक के पास चले देवकीनन्दन खत्री समग्र