पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९२७

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- इस दालान में उन्हें पन्द्रह आदमी दिखाई दिय जिनके विषय में यह जानना कठिन था कि वे मर्द है या औरत, क्योंकि सभों की पोशाक एक ही रग-ढंगकी तथा सभों के चेहरे पर नकाब पड़ी हुई थी। इन्हीं पन्द्रह आदमियों में से दो आदमी मशालची का काम दे रहे थे। जिस तरह उनकी पोशाक खूबसूरत और वेशकीमत थी उसी तरह मशाल भी सुनहरी तथा जड़ाऊ काम की दिखाई दे रही थी और उसके सिरे की तरफ बिजली की तरह रोशनी हो रही थी इसके अतिरिक्त उनके हाथ में तल की कुप्पी न थी और इस बात का कुछ पता नहीं लगता था कि इस मशाल की रोशनी का सबब क्या है। राजा गोपालसिह और इन्द्रजीतसिह ने देखा कि व लोग शीघ्रता के साथ उस दालान के सजाने और फर्श वगैरह के ठीक करन का इन्तजाम कर रहे है। बारहदरी के दाहिने तरफ एक खुला हुआ दर्वाजा है जिसके अन्दर वे लोग बार वार जाते हैं और जिस चीज की जरूरत समझते हैं ले आते हैं। यद्यपि उन सभों की पोशाक एक हीरग-ढंग की है और इसलिए वडाई छुटाई का पता लगाना कठिन है तथापि उन सभों में से एक आदमी ऐसा है जो स्वय कोई काम नहीं करता और एककिनारे कुर्सी पर बैठा हुआ अपने साथियों से काम ले रहा है। उसके हाथ में एक विचित्र ढग की छडी दिखाई दे रही है जिसके मुद्दे पर नेहायत खूबसूरत और कुछ बडा हिरन बना हुआ है। देखत ही देखते थोडी देर में बारहदरी सज के तैयार हो गई और कन्दीलों की रोशनी से जगमगाने लगी। उस समय वह नकाबपोश जो कुर्सी पर बैठा हुआ था और जिसे हम उम मण्डली का सर्दार भी कह सकते है अपने साथियों से कुछ कह-सुनकर बारहदरी के नीचे उतर आया और धीरे-धीरे उस तरफ रवाना हुआ जिधर महाराजा सुरेन्द्रसिह वगैरह टिके हुए थे यह कैफियत देखकर राजा गोपालसिह और इन्द्रजीतसिह जाछिपे-छिपेसब तमाशा देख रहे थे वहॉ स लौटे और शीघ्र ही महाराज के पास पहुंचकर जो कुछ देखा था सक्षेप में बयान किया। उसी समय एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया। सभों का ध्यान उसी तरफ चला गया और इन्द्रजीतसिह तथा राजा गोपालसिह ने समझा कि यह वही नकाबपोशों का सार होगा जिसे हम उस बारहदरी में देख आये हैं और जो हमारे देखते-दखतीवहाँ से रवाना हो गया था मगर जब पास आया तो सभों का भ्रम जाता रहा और एकाएक इन्द्रदेव पर निगाह पड़ते ही सब कोई चौक पड़े। राजा गोपालसिंह और इन्द्रजीतसिह को इस बात का भी शक हुआ कि वह नकाबपोशों का सर्दार शायद इन्द्रदेव ही हो, नगर यह देख कर उन्हें ताज्जुब मालूम हुआ कि इन्द्रदेव उस ( नकाबपोशों की सी) पोशाक में न था जैसा कि उस बारहदरी में देखा था चल्कि वह अपनी मामूली दर्वारी पोशाक में था। इन्द्रदेव ने वहाँ पहुँचकर महाराज सुरेन्दसिह बीरेन्द्रसिह, जीतसिह, तेजसिह राजा गोपालसिह तथा दोनों कुमारों को अदब के साथ झुककर सलाम किया और इसके बाद वाकी ऐयारों से भी जै भाया की ' कहा । सुरेन्द्र-इन्द्रदेव जव से हमने इन्दजीतसिह की जुबानी यह सुना है कि इस तिलिस्म के दारोगा तुम हो तब से हम बहुत ही खुश हैं मगर ताज्जुब होता था कि तुमन इस बात की हमें कुछ भी खबर नहीं की और न हमारे साथ यहाँ आये ही। अब यकायक इस समय यहाँ पर तुम्हें देख कर हमारी खुशी और भी ज्यादे हो गई। आओ हमारे पास बैठ जाओ और यह कहो कि हम लोगों के साथ तुम यहाँ क्यों नहीं आये? इन्ददेव- (बैठकर) आशा है कि महाराज मेरा वह कसूर माफ करेंगे। मुझे कई जसरी काम करने थे जिनके लिए अपने ढग पर अकेले आना पडा। बेशक मैं इस तिलिस्म का दारोगा हूँ और इसलिए अपने को बड़ा ही खुशकिस्मत समझता हूँ कि ईश्वर ने इस तिलिस्म को आप ऐसे प्रतापी राजा के हाथ में सौंपा है। यद्यपि आपके फर्मावर ओर होनहार पोतों ने इस तिलिस्म को फतह किया है और इस सवव से वे इसके मालिक हुए है तथापि इस तिलिस्म का सच्या आनन्द और तमाशा दिखाना मरा ही काम है यह मरे सिवाय किसी दूसरे के किए नहीं हो सकता। जो काम कुँअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह का था उसे ये कर चुक अर्थात तिलिस्म तोड चुके और जा कुछ इन्हें मालूम होना था हो चुका परन्तु उन बातों भेदों और स्थानों का पता इन्हें नहीं लग सकता जा मेरे हाथ में है और जिसके सबब से में इस तिलिस्म का दारोगा कहलाता हूँ। तिलिस्म बनाने वालों ने तिलिस्म के सम्बन्ध में दो किताबें लिखी थीं जिनमें से एक तो दारागा के सुपुर्द कर गये और दूसरी तिलिस्म तोडने वाले के लिए छिप कर रख गये जो कि अब दोनों कुमारों के हाथ लगी या कदाचित इनके अतिरिक्त और भी काई किताब उन्होंने लिखी हो तो उसका हाल मैं नहीं जानता हॉ जो किताब दारागा के सुपुर्द कर गये थे वह वसीयतनामे के तौर पर पुश्तहापुरत से हमारे कब्जे में चली आ रही है और आजकल मेरे पास मौजूद है। यह मै जरूर कहँग ए में बहुत से मुकाम ऐस है जहा दोनों कुमारों का जाना तो असम्भव ही है परन्तु तिलिस्म टूटने के पहिले कुता था हाँ अब में वहाँ बखूबी जा सकता हूँ। आज मैं इसीलिए इस तिलिस्म के अन्दर आपके पा लिस्म का पूरा पूरा तमाशा आपको दिखाऊँ जिसे दुअर और आनन्दसिह नहीं दिखा क पहिले मै महाराज से एक चीज माँगता हूँ जिसक' २१ ९२१