पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९२८

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चल सकता। महाराज-वह क्या ? इन्द्रदेव-जब तक इस तिलिस्म में आप लोगों के गाध हूँ तब तक अदब लेहाज और कायद की पाबन्दी से माफ रक्खा जाऊँ । महाराज-इन्द्रदेव, हम तुमसे बहुत प्रसन्न है। जब तक तिलिस्म में हम लोगों के साथ हा तभी तक के लिए नहीं बल्कि हमशा क लिए हमने इन बातों स तुम्ह छुट्टी दी तुम विश्वास रक्या कि हमार याल-बच्चे और सच्चे साथी भी हमारी इस बात का पूरा-पूरा लहाज रक्खेंगे। यह सुनत ही इन्द्रदव ने उठकर महाराज को सला किया और फिर थेटकर कहा अब आज्ञा होता खान-पीने का सामान जो आप लोगों के लिए लाया टू हाजिर करूं। महाराज-अच्छी बात हे लाभ क्योंकि हमारे साथियों में से कई ऐस है जो भूख मार वताव हो रह होंग। तेज-मगर इन्द्रदेव तुमने इस बात का परिचय ता दिया ही नहीं कि तुम वास्तव में इन्द्रदेव ही हा या कोई और ? इन्द्रदेव- (मुम्कुराकर) भरे मिवाय कोइ गर यहा आ नहीं सकना । तेज-तथापि--चिलेण्डाला। इन्द्रदेव-चक्रधर वीरेन्द्र में एक बात और पूछना चाहता हूँ? इन्द्रदेव-आज्ञा। वीरन्द-वह स्थान कैसा है जहाँ तुम रहा करत हा ओर जहा मायारानी अपने दारोगा को लकर तुम्हारे पास गई था? इन्द्र- वह स्थान तिलिस्म स सम्बन्ध रखता है और यहाँ से थोड़ी ही दूर पर है। में स्वयं आप लोगों का ले चलकर वहा की सेर कराऊंगा। इसके अतिरिक्त अभी मुझे बहुत सी बातें कहनी है। पहिले आप लोग भोजन इत्यादि स छुट्टी पा लें। तेज-हम लाग मशाल की राशनी म क्या आप ही लोगों को पहाड स उतरत दख रह थ? इन्द-जी हाँ मै एक निराले हो रास्ते स यहाँ आग हूँ। आप लोग देशक ताज्जुब करत होंग कि पहाड पर स कोन उतर रहा है परन्तु में अकला ही नहीं आया हालेक कई तमाश भी जपन साथ लाया हूँ मगर उनका जिक्र करन का अभी मौका नहीं है। इतना कहकर इन्द्रदव उठ खड़ा हुआ और देखते-देखतेदूसरी तरफ चला गया मार अपनी इस बात में कि- कई तमाश भी अपने साथ लाया हूँ कइयों को ताज्जुब और घबराहट में डाल गया । ग्यारहवॉ बयान थाडी ही देर बाद इन्द्रदेव वहाँ आया। अयकी दफ उसके साथ कई नकाबपाश भी थे जो अपने हाथ में तरह-तरह की खाने-पीने की चीज लिए हुए थे। एक के हाथ में जल था जिसस जमीन धोई गई और खाने-पीन की चीजें वहाँ रखकर व नकाबपोश लौट गये तथा पुन कई जरूरी चीजें लेकर आ पहुँचे। इन्तजाम ठीक हो जान पर इन्द्रदेव ने कायदे के साथ समों को भोजन कराया और इस काम से छुट्टी मिलने पर उस वारहदरी में चलने के लिए अर्ज किया जिसे उसने यहा पहुँचकर सजाया था और जिसका हाल हम ऊपर के क्यान में लिख चुके है। वास्तव में यह बारहदरी बड़ी खूपी के साथ सजाई गई थी। यहाँ सभी के लिए कायदे क साथ बैठन और आराम करन का सामान मौजूद था जिसे देखकर महाराज बहुत प्रसन हुए और इन्द्रदेव की तरफ देखकर बोले क्या यह सब सामान इसी बाग में मौजूद था? इन्द-जी हाँ कवल इतना ही नहीं बल्कि इस याग में जितनी इमारते हैं उन सभों को सजाने और दुरुस्त करने के लिए यहाँ काफी सामान है इसके अतिरिक्त यहाँ से मरा मकान बहुत नजदीक है इसलिए जिस चीज की जरूरत हो मैं बहुत जल्द ला सकता हूँ (कुछ देर सोचकर और हाथ जोड़कर)एक और भी जरूरी बात अर्ज किया चाहता हूँ। महाराज-वह क्या? इन्द्र-यह तिलिस्म आय ही क बुजुर्गों की बदौलत बना है और उन्हीं की आज्ञानुसार जब से यह तिलिस्म तैयार देवकीनन्दद सत्री समग्र ९२२