पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

egyet भूत--शान्ता,* आज तुमम मिलकर में बहुत ही प्ररग्न हुआ। शान्ता-क्यों ? जो चीज किसी कारणवश खा जाती है उसे यकाय पान से प्रसन्नता हो सकती है मगर जा चीज जान बूझ कर फेंक दी जाती है उसके पान की प्रसन्नता कैसी? भूत--किसी को कहीं स एक पत्थर का टुकड़ा मिल जाय और वह उसे धकार या बदसूरत समझ कर फेंक दे तथा कुछ समय के बाद जब उसे मालूम हो कि वास्तव में यह हीरा या पत्थर नहीं तो क्या उसके फेके देन का उसका दुख न हागा ? या उसे पुन पाकर प्रसन्नता न होगी? शान्ता-अगर वह आदमी जिसने हीरे को पत्थर समझ कर फेंक दिया है यह जान कर वह वास्तव में हीरा था. उसकी खोज कर या इस विचार से कि उसे मैंने फलानी जगह छोडाया फेंका है वहा जाने स जरूर मिल जायगा उसकी तरफ दौड जाय तो बशक समझा जायगा कि उस उसके फेंक दने का रज हुआ था और उसक मिल जान स प्रसन्नता होगी लेकिन यदि ऐसा नहीं है तो नहीं। भूत-ठीक है मगर वह आदमी उस जगह जहा उसने हीर का पत्थर समझ कर फेंका था पुन उसे पाने की आशा में तभी जागगा जब अपना जाना सार्थक समझेगा। परन्तु जब उसे यह निश्चय हो जायगा कि वहा जान में उस हीरे के साथ तू भी बर्वाद हो जायगा अर्थात वह हीरा भी काम का न रहगा और तेरी भी जान जाती रहेगी तब वह उसकी खाज में क्योंकर जायगा? शान्ता-ऐसी अवस्था में वह अपने का इस योगरा धनाचेहींगा नहीं कि वह उस हीरे की खोज में जाने लायक न रहे यदि यह यात उसके हाथ में होगी और वह उस हीरे को वास्तव में हीरा समझता होगा। भूतनाथ-वेशक सगर शिकायत की जगह तो ऐसी अवस्था म हो सकती थी जब वह अपने बिगडे हुए कटीले रास्ते को जिसके सबब से वह उस हीरे तक नहीं पहुंच सकता था पुन सुधारने और साफ करने के लिए परले सिरे का उद्योग करता हुआ दिखाई न देता। शान्ता-ठीक है लेकिन जब वह हीरा यह देख रहा है कि उसका अधिकारी या मालिक बिगड़ी हुई अवस्था में भी एक मानिक के टुकड़े को कलेजे में लगाय हुए घूम रहा है और यदि वह चाहता तो उस हीरे को भी उसी तरह रख सकता था मगर अफसोस उस हीरे की तरफ जो वास्तव में पत्थर ही समझा गया है कोई भी ध्यान नहीं देता जाये हाथ पैर का हो कर भी उसी मालिक की खोज में जगह जगह की मिट्टी छानता फिर रहा है जिसने जान बूझ कर उसे पैर में गडने वाले ककड की तरह अपने आगे से उठा कर फेंक दिया है और जानता है कि उस पत्थर के साथ जिसे वह व्यर्थ ही में हीरा कह रहा है वास्तव में छोटी छोटी हीरे की कनिया भी चिपकी हुई हैं जो छोटी हान के कारण सहज ही मिट्टी में मिल जा सकती हैं। तब क्या शिकायत की जगह नही है । भूत-परन्तु अदृष्ट भी कोई वस्तु है प्रारब्ध भी कुछ कहा जाता है और होनहार भी किसी चीज का नाम है ॥ शान्ता-यह दूसरी बात है इन सभों का नाम लेना वास्तव में निरुत्तर (लाजवाब) होना और चलती बहस को जान घूझ कर बन्द कर देना ही नहीं है बल्कि उद्योग ऐसे अनमोल पदार्थ की तरफ से मुह फेर लेना भी है। अस्तु जाने दीजिए मेरी यह इच्छा भी नहीं है कि आपको परास्त करने की अभिलाषा से में विवाद करती ही जाऊ यह तो बात ही बात में कुछ कहने का मौका मिल गया और छाती पर पत्थर रख कर जी का उबाल निकाल लिया नहीं तो जरूरत ही क्या थी। भूतनाथ-मै कसूरवार हूँ और बेशक कसूरवार हूँ मगर यह उम्मीद भी तो न थी कि ईश्वर की कृपा से तुम्हें इस तरह जीती इस दुनिया में देखूगा । शान्ता-अगर यही आशा या अभिलाषा होती तो अपने परलोकगामी होने की खबर मुझ अभागी के कानों तक पहुँचाने की कोशिश क्यों करते और भूत-यस यस. अब मुझ पर दया करो और इस ढग की बातें छोड दो क्योंकि आज बड भाग्य से मेरे लिए यह खुशी का दिन नसीब हुआ है इसे जली कटी नाते सुनाकर पुन कडवा न करा और यह सुनाओ कि तुम इतने दिनों तक कहा छिपी हुई थी और अपनीलडकी कमला का किसी तरह धोखा देकर चली गई कि आज तक तुमको मरी हुई ही समझती है? इस समय शान्ता का खूबसूरत चेहरा नकाब से ढका हुआ नहीं है। यद्यपि वह जमान के हाथों सताई हुई तथा दुबली-पतली और उदास है और उसका तमाम बदन पीला पड़ गया है मगर फिर भी आज की खुशी उसके सुन्दर शान्ता कमला की मा का नाम था। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २२ ९४३