पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९६७

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६. 'जो आदमी इन सीदियों की राह ऊपर जायगा और एक नजर अन्दर की तरफ झाक वहा की कैफियत देखकर इन्हीं सीठियों की राह नीचे उतर आवेगा उसे एक लाख रुपये इनाम में दिए जायग। इस इमारत ने चारो तरफ एक अनूठा रग पैदा कर दिया था। हजारों आदमी उस इमारत के ऊपर चढ़ जाने के लिए तैयार थ और हर एक आदमी अपनी अपनी लालसा पूरी करने के लिए जल्दी मचा रहा था मगर सीढी का दर्वाजा बन्द था। पहरेदार लाग किसी को ऊपर जाने की इजाजत नहीं देत थे और यह कह कर सभों को सन्तोष करा देते थे कि वारात वाले दिन दर्वाजा खुलेगा और पन्द्रह दिन तक बन्द न होगा। यहा से चुनारगढ की सड़कों के दोनों तरफ जो सजावट की गई उसमें भी एक अनूठापन था। दोनों तरफ रोशनी के लिए जाफरी बनी हुई थी और उसमें अच्छे अच्छे नीति के श्लोक दरसाये गये थे। बीचोबीच में थोड़ी-थोड़ी दूर पर नौबतखाने के बगल में एक एक मचान था जिस पर एक या दो कैदियों के बैठन के लिए जगह बनी हुई थी। जाफरी के दोनों तरफ दस हाथ चौड़ी जमीन में बाग का नमूना तैयार किया गया था और इसके बाद आतिशबाजी लगाई गई थी। आध आध कोस की दूरी पर सर्वसाधारण और गरीव तमाशबीनों के लिए महफिल तैयार की गई थी और उसके लिए अच्छी अच्छी गाने वाली राडियों और भाड मुकर्रर किए गए थे। रात अधेरी होने के कारण रोशनी का सामान ज्यादै तैयार किया गया था और वह तिलिस्मी चन्द्रमा जो दोनों राजकुमारों को तिलिस्म के अन्दर से मिला था चुनारगढ किले के ऊचे कगूरे पर लगा दिया गया था जिसकी रोशनी इस तिलिस्मी मकान तक बड़ी खूबी और सफाई के साथ पड रही थी। पाठक दोनों कुमारों के बारात की सजावट महफिलों की तैयारी रोशनी और आतिशबाजी की खूबी मेहमानदारी की तारीफ और खैरात की बहुतायत इत्यादि का हाल विस्तारपूर्वक लिख कर पढने वालों का समय नष्ट करना हमारी आत्मा और आदत के विरुद्ध है। आप खुद समझ सकते है कि दोनों कुमारों की शादी का इन्तजाम किस खूबी के साथ किया गया होगा नुमाइश की चीजें कैसी अच्छी होगी बडप्पन का कितना बड़ा खयाल किया गया होगा और यारात किस धूमधाम से निकली हागी। हम आज तक जिस तरह सक्षेप में लिखते आए है अब भी उसी तरह लिखेंगे तथापि हमारी उन लिखावटों से जो व्याह के सम्बन्ध में ऊपर कई दफे मौक मौके पर लिखी जा चुकी हैं आपको अन्दाज के साथ-साथ अग्नुमान करने का हौसला मी मिल जायगा और विशष सोच विचार की जरूरत नरहेगी। हम इस जगह पर केवल इतना ही लिखेंगे कि- बारात बडे धूमधाम से चुनारगढ के बाहर हुई * आगे आग नोवत निशान और उसके बाद सिलसिलेवार फौजी सवार पैदल और तोपखाने वगैरह थे जिसके बाद ऐसी फुलवारिया थी जिनके देखने से खुशी और लूटने से दौलत हासिल हो। इसके बाद बहुत बडे सजे हुए अम्बारीदार हाथी पर दोनों कुमार हाथी ही पर सवार अपने बडे बुजुर्गो रिश्तेदारों और मेहमानों से घिरे हुए धीरे धीरे दोतर्फी बहार लूटते और दुश्मनों के कलेजों को जलाते हुए जा रहे थे और उनके बाद तरह तरह की सवारियों और घोडों पर बैठे हुए बडे बडे सरि लोग दिखाई दे रहे थे। अन्त में फिर फौजी सिपाहियों का सिलसिला था। आगे वाल नौवत निशान से लेकर कुमारों के हाथी तक कई तरह के बाजे वाले अपने अपने मौके से अपना इल्म और हुनर दिखा रहे थे। कुशल पूर्वक वासल ठिकाने पहुची और शास्त्रानुसार कर्म तथा रीति होने के बाद कुँअर इन्द्रजीतसिह का विवाह किशोरी और आनन्दसिह का कामिनी के साथ हो गया और इस काम में रणधीरसिह ने भी वित्त के अनुसार दिल खोल कर खर्च किया। दूसरे रोज पहर भर दिन चढने के पहिले ही दोनों बहुओं की रुखसती करा कर महाराज चुनार की तरफ लौट पड़े। चुनारगढ पहुचने पर जो कुछ रस्में थीं वे पूरी होने लगी और मेहमान तथा तमाशयीन लोग तरह तरह के तमाशों और महफिलों का आनन्द लूटने लग। उधर तिलिस्मी मकान की सीढियों पर लाख रुपया इनाम पाने की लालसा से लोगों ने चढना आरम्भ किया। जो कोई दीवार के ऊपर पहच कर अन्दर की तरफ झोंकता वह अपने दिल को किसी तरह न सम्हाल सकता र एक दफे खिलखिला कर हसने के बाद अन्दर की तरफ कूद पडता और कई घण्टे के बाद उस चबूतरे वाली यहुत बडी तिलस्मी इमारत की राह से बाहर निकल जाता । 1

  • देखिये चन्द्रकान्ता सन्तति इक्कीसवॉ भाग आठवा बयान ।

चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २२