पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९६८

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बस विवाह का इतना ही हाल सक्षेप में लिख कर हम इस बयान को पूरा करते है और इसके बाद सोहागरात की एक अनूठी घटना का उल्लेख करक इस बाईसर्वे भाग को समाप्त करेंगे क्योंकि हम दिलचस्प घटनाओं ही का लिखना पसन्द करते हैं। चौदहवां बयान आज कुअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह के खुशी का कोई ठिकाना नहीं है क्योंकि तरह तरह की तकलीफें उठा कर एक मुददत के बाद इन दोनों की दिली मुरादें हासिल हुई है। रात आधी से कुछ ज्यादे जा चुकी है और एक सुन्दर सजे हुए कमरे में ऊँची और मुलायम गद्दी पर किशोरी और कुअर इन्द्रजीतसिह बैठे हुए दिखाई देते हैं। यद्यपि कुअर इन्द्रजीतसिह की तरह किशोरी के दिल में भी तरह तरह की उमग भरी हुई है और वह आज इस ढग पर कुँअर इन्द्रजीतसिह की पहिली मुलाकात को सौभाग्य का कारण समझती है मगर उस अनोखी लज्जा के पाले में पड़ी हुई किशोरी का चेहरा घूघट की ओट से बाहर नहीं होता जिसे प्रकृति अपने हाथा से औरत की बुद्धि में जन्म ही स दे दती है। यद्यपि आज से पहिले कुँअर इन्द्रजीतसिह का कई दफे किशोरी देख चुकी है और उनसे बातें भी कर चुकी है तथापि आज पूरी स्वतत्रता मिलने पर भी यकायक सूरत दिखाने की हिम्मत नहीं पडती। कुमार तरह-तरह की बातें कहकर और समझा कर उसकी लज्जा दूर किया चाहते है मगर कृतकार्य नहीं होते। बहुत कुछ कहने सुनन पर कभी कभी किशारी दो एक शब्द बोल देती है मगर यह भी धडकते हुए कलेजे के साथ । कुमार ने साच लिया कि यह स्त्रियों की प्रकृति है अतएव इसके विरुद्ध जोर न देना चाहिये यदि इस समय इसकी हिम्मत नहीं खुलती तो क्या हुआ घण्टे दो घण्टे, पहर या एक दो दिन में खुल ही जायगी। आखिर ऐसा ही हुआ ? इसके बाद किस तरह की छेडछाड शुरू हुई या क्या हुआ सो हम नहीं लिख सकते, हा उस समय का हाल जरूर लिखेगे जब धीरे धीरे सुबह की सुफैदी आसमान पर फैलने लग गई थी और नियमानुसार प्रात काल बजाये जाने वाली नफोरी की आवाज ने कुँअर इन्द्रजीतसिह और किशोरी को नींद से जगा दिया था। किशोरी जो कुँअर इन्द्रजीसिह के बगल में सोई हुई थी घबडाकर उठ बैठी और मुह धोने तथा विखर हुए बालों को सुधारने की नीयत से उस सुनहरी चौकी की तरफ बढी जिस पर सोने के बर्तन में गगाजल भरा हुआ था और जिसके पास ही जल गिराने के लिए एक बडा सा चाँदी का आफताबा *भी रक्खा हुआ था। हाथ में जल लेकर चहरे पर लगाते और पुन अपना हाथ देखने के साथ ही किशारी चौक पड़ी और घवडा कर बोली 'हैं यह क्या मामला है? इन शब्दो ने इन्द्रजीतसिह को चौका दिया। वे घबडा कर किशोरी क णस चले गए और पूछा, 'क्यों क्या हुआ?' किशोरी मेरे साथ यह क्या दिल्लगी की । इन्द्र - कुछ कहो भी तो क्या हुआ किशोरी-( हाथ दिखा कर ) देखिए यह रग कैसा है जो चेहरे पर से पानी लगने के साथ ही छूट रहा है। इन्द-(हाथ देख कर) हॉ है तो सही मगर मैंने तो कुछ भी नहीं किया तुम खुद सोच सकती हो कि मै भला तुम्हारे चेहरे पर रग क्यों लगाने लगा । मगर तुम्हारे चेहरे पर यह रंग आया ही कहाँ से ! किशोरी-(पुन चेहरे पर जल लगा के ) यह देखिए है या नहीं । इन्द्र-सो तो में खुद कह रहा हू कि रग जरूर है मगर जरा मेरी तरफ देखो तो सही । किशोरी ने जो अब समयानुकूल लज्जा के हाथों से छूट कर ढिठाई का पल्ला पकड चुकी थी और जो कई घण्टों की कशमकश और चालचलन की बदौलत बातचीत करने लायक सम्झी जाती थी कुमार की तरफ देखा और फिर कहा, देखिए और कहिए यह किसकी सूरत है ? इन्द्र-(और भी हैरान होकर) बड़े ताज्जुब की बात है । और इस रग के छूटने से तुम्हारा चेहरा भी कुछ बदला हुआ सा मालूम पडता है । अच्छा जरा अच्छी तरह मुह धो डालो। किशोरी ने अच्छा कह कर मुँह धा डाला और स्माल से पोछने के बाद कुमार की तरफ देख कर बोली बताइए अब कैसा मालून पडता है रग अब छूट गया या अभी नहीं ?' इन्द-(घबडा कर ) हे अब तो तुम साफ कमलिनी मालूम पडती हौ , यह क्या मामला है ? किशोरी- मैं कमलिनी तो हई हू । क्या पहिले कोई दूसरी मालूम पडती थी? इन्द्र-बेशक । पहिले तुम किशोरी मालूम पड़ती थीं कम रोशनी और कुछ लज्जा के कारण यद्यपि बहुत अच्छी 'एक प्रकार का बर्तन। ? देवकीनन्दन खत्री समग्र ९६२