पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९८१

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he दोपहर दिन का समय है और सब कोई भोजन इत्यादि से निश्चिन्त हो चुके है। एक सजे हुए कमरे में राजा गोपालसिह और भरतसिह कुअर आनन्दसिह भैरोसिह और तारासिह बैठे हुए-हँसी खुशी की बातें कर रहे हैं। गोपाल-(भरतसिह से) क्या मुझे स्वप्न में भी इस बात की उम्मीद हो सकती थी कि आपसे किसी दिन मुलाकात होगी? कदापि नहीं क्योंकि लोगों के कहने पर मुझे विश्वास हो गया था कि आप जगल में डाकुओं के हाथ से मारे भरत--और इसका बहुत बडा सबब यह था कि तब तक दारोगा की बेईमानी का आपको पता न लगा था, उसे आप ईमानदार समझते थे और उसी ने मुझे कैद किया था। गोपाल-बशक यही बात है मगर खैर ईश्वर जिसका सहायक रहता हे वह किसी के बिगाडे नहीं विगड सकता। देखिए मायारानी ने मेरे साथ क्या कुछ न किया नगर ईश्वर ने मुझे बचा लिया और साथ ही इसके बिछुडे हुओं को भी मिला दिया। भरत-ठीक है मगर मेरे प्यारे दोस्त, मे कह नहीं सकता कि कम्बख्त दारोगा ने मुझे कैसी कैसी तकलीफें दी हैं और मजा तो यह है कि इतना करने पर भी वह बराबर अपने को निर्दोष ही बताता रहा । अस्तु जय मै अपना हाल बयान करूँगा तब आपको मालूम होगा कि दुनिया में कैसे कैसे निमकहराम और सगीन लोग होते हैं और बदों के साथ नेकी करने का नतीजा बहुत बुरा होता है। गोपाल-ठीक है ठीक है इन्हीं वातों को सोच कर भैरोसिह बार बार मुझसे कहते है कि आपने नानक को सूखा छोड दिया सो अच्छा नहीं किया वह बद है और बदों के साथ नेकी करना वैसा ही है जैसा नेकों के साथ बदी करना । भरत-भैरोसिह का कहना वाजिर है, मै उनका समर्थन करता हू । भैरो-कृपानिधान सच तो यों है कि नानक की तरफ से मुझे किसी तरह बेफ़िकी होती ही नहीं। मै अपन दिल को कितना ही समझाता हू मगर वह जरा भी नहीं मानता। ताज्जुब नहीं कि भैरोसिह इतना कह ही रहा था कि सामने से भूतनाथ आता हुआ दिखाई पडा । गोपाल-अजी वाह जी भूतनाथ, चार चार दर्फ बुलाने पर भी आपक दर्शन नहीं होते !! भूत-( मुस्कुराता हुआ) अभी क्या हुआ हे दो चार दिन बाद तो मेरे दर्शन और भी दुर्लभ हो जायगे ! गोपाल-(ताज्जुब से) सो क्या? भूत-यही कि मेरा सपूत नानक इस शहर में आ पहुचा है और मेरी अन्त्येष्टि क्रिया करके बहुत जल्द अपने सिर का बोझ हलका करने की फिक्र में लगा है। (बैठ कर ) कृपा कर आप भी जरा हाशियार रहियेगा ! गोपाल-तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि वह बदनीयती के साथ यहाँ आ गया है । भूत-मुझ अच्छी तरह मालूम हो गया है। इसी से तो मुझे यहाँ आन में देर हो गई क्योंकि मै यह हाल कहने और तीन चार दिन की छुट्टी लेने के लिए महाराज के पास चला गया था यहाँ से लौटा हुआ आपके पास आ रहा हूँ ! गोपाल-तो क्या महाराज से छुट्टी ले आये? भूत-जी हाँ अब आपसे यह पूछना है कि आप अपने लिये क्या बन्दोबस्त करेंगे? गोपाल-तुम तो इस तरह की बातें करते हो जैसे उसकी तरफ से कोई बहुत बड़ा तरद हो गया हो । वह बेचारा कल का लौडा हम लोगों के साथ क्या कर सकता है? भूत-सो तो टीक है मगर दुश्मन को छोटा और कमजोर न समझना चाहिये। गोपाल-तुम्हें ऐसा ही डर है तो कहा बैठे ही बैठे चौबीस घण्टे के अन्दर उसे गिरफ्तार करा के तुम्हारे हवाले कर दू? भूत-यह मुझे विश्वास है और आप ऐसा कर सकते हैं, मगर मुझे यह मजूर नहीं है. क्योंकि मैं जरा दूसरे ढग से उसका मुकाबिला किया चाहता हू। आप जरा बाप बेटे की लडाई देखिये तो ! हाँ अगर वह आपकी तरफ झुके तो जैसा मौका देखिये कीजियेगा। गोपाल-खैर ऐसा ही सही मगर तुमने क्या सोचा है जरा अपना मनसूचा तो सुनाओ ! इसके बाद उन लोगों में देर तक बातें हाती रही और दो घण्टे के बाद भूतनाथ उठ कर अपने डेरे की तरफ चला गया। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २३ ९७५