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मिला करेंगे। अच्छा साध्वी, तेरा कल्याण हो, यह भिक्षु सुखानन्द चला।"
"हाय-हाय, निर्मोही न बनो!"
"सब झूठमूठ का धन्धा है। प्यारी, झूठमूठ का धन्धा!"
"पर तनिक तो ठहरो!"
"अब नहीं, देखू भैया को वहाँ कैसे रक्खा गया है।"
"तो जाओ फिर।"
"जाता हूँ।"
सुखदास धीरे-धीरे घर से बाहर चला गया। सुन्दरी आँखों में आँसू भरे एकटक देखती रही।