पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/११

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प्राक्कथन

महाकवि देवदत्त उपनाम देव-कवि दुसरिहा द्विवेदी कान्यकुब्ज ब्राह्मण पंसारीटोला बलालपुरा, शहर इटावा के निवासी थे। भावविलास में आपने अपना जन्म-काल संवत् १७३० लिखा, तथा सुखसागर-तरंग ग्रंथ पिहानी के अकबरअलीखाँ को समर्पित किया । उनका आदिम समय संवत् १८२४ था । अतएव इनका जीवन-काल १४ वर्ष से अधिक बैठता है। आप हिंदी के परमोत्कृष्ट कवियों में थे। गोस्वामी तुलसीदास तथा सूरदास के पीछे उत्तमता में हम इन्हीं का नंबर समझते हैं। प्राचार्यता, भाषा-सौष्ठव तथा भाव-गांभीर्य आपके प्रधान गुण हैं । टीका का भाग पढ़ने से भाव-गांभीर्य प्रकट होगा । देव के पूरे भाव खोज निकालना कठिन भी है। आपके ७२ या ५२ ग्रंथ कहे जाते हैं। उनमें से भावविलास (सं० १७४६ ), अष्टयाम, भवानीविलास, कुशल-विलास, प्रेम-चंद्रिका, जाति-विलास, रस-विलास (सं० १७८३), शब्द-रसायन, सुख-सागर-तरंग (सं० १८२४), नीति-शतक, वैराग्य-शतक, सुजान-चरित्र, राग-रत्नाकर, देव-शतक, सुदरी-सिंदूर, शिवाष्टक, प्रेम-तरंग, देव-माया-प्रपंच-नाटक, देव-चरित्र, वृक्ष-विलास, पावस-विलास, प्रेम-दर्शन, रसानंद-लहरी, प्रेम-दीपिका, सुमिल-विनोद, राधिका-विलास, नख-शिख और प्रेम-दर्शन ज्ञात हो चुके हैं । रस-विलास और प्रेम-चंद्रिका में परमोच्च साहित्य-गौरव है, शब्द-रसायन में प्राचार्यता, भाव-विलास में रीति-कथन, वृक्ष-विलास में अन्योक्ति, नाटक में (अर्द्ध नाटक के रूप में ) धर्म-विवेचन, देवचरित्र में कृष्ण-कथा तथा अन्य प्रथों में अन्य अनेकानेक विषय ।