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पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/१२

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देव-सुधा


देवजी पहुँचे अनेक ऊँचे-ऊंचे स्थानों में, किंतु जमकर बहुत दिन कहीं भी नहीं रहे। चाहे आश्रयदाता की खोज में, या किसी अन्य कारण से आप सारे भारतवर्ष में घूमते फिरे। इसके फल-स्वरूप आपने जातियों और देशों की वधुओं का सच्चा वर्णन रस-विलास में बहुत अच्छा किया है। राग-रत्नाकर में राग-रागिनियों का उत्कृष्ट कथन है। देवजी की बहुज्ञता बहुत बढ़ी-चढ़ी थी। इनकी रचना के मुख्य गुणों में भाषा-सौंदर्य, उत्कृष्ट छंदों का प्राचुर्य, प्राकृतिक दृश्यों का विवरण, वैभव, प्राचार्यश्व, ऊँचे ख़याल, हृदय पर चोट करनेवाले उच्च प्रेम के कथन, उपमा, रूपकादि का अच्छा अवलोकन, चोजों का निकालना आदि कहे जा सकते हैं। आपने अधिकतर सवैया तथा घनाक्षरियों में रचना की। कुछ श्रेष्ठ दोहे भी लिखे।

इस ग्रंथ में हमने इनके मुद्रित तथा अमुद्रित बहुतेरे ग्रंथों से छाँटकर २७१ परमोत्कृष्ट छंद रखे हैं। २७० छन्दों के नम्बर ही है तथा एक और १२४ (अ) है। अनेकानेक अन्य छंद भी ऐसे ही हैं, किंतु आजकल जनता थोड़े में अधिक जानने की इच्छा रखती है; इसी से थोड़े ही छंदों में हमने देव का महत्त्व दिखलाने का प्रयत्न किया है। पहले हमारा विचार था कि बिहारी-सतसई की भाँति इनके भी ७०० छंद चुनें, किंतु पीछे उपयुक्त विचार से चुने हुए छंदों की संख्या कम कर दी गई है। ऐसे ही छोटे-छोटे संग्रहग्रंथ इतर महाकवियों के भी लिखने का विचार था। उनमें पचास या साठ से दो-ढाई सौ तक छंद रखे जाते। इस ग्रंथ में हमने प्रार्थना, सिद्धांत, विविध वर्णन, सीता-सौभाग्य, प्रकृति-निरीक्षण, समीर, चंद्र-चंद्रिका, विनोद, पावस, हिंडोरा, फाग, रास, राग, उपमादि, शाब्दिक सामंजस्य, संक्षिप्त गुण, रूप, चित्र, दर्शन-मिलन, प्रेम, मन, विरह, खंडिता, उपालंभ, मान, सखी की शिक्षा, काव्यांग, उद्धव और देश तथा जाति के विषयों पर छंद चुने हैं। अश्लील