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देव-सुधा

अयानपने का अंधकार प्रेम है। नायिका कहती है कि प्रेम मूर्खता अथवा अंधकार-पूर्ण ही सही, किंतु मुझे वह सोते-जागते छोड़ता नहीं है । वह प्रेम दिन-रात क्षण-भर को भी नहीं छिपता है । उससे देह दीप्ति-पूर्ण है, अथच उसकी कांति उजियाली है। प्रयोजन यह है कि प्रेम को कोई मूर्खता या अंधकार-पूर्ण भले ही कहे, किंतु वास्तव में वह उज्ज्वल है । स्नेह के अर्थ प्रेम तथा तेल दोनो के हैं । स्नेह चिकना माना गया है, इसी से कथन हुआ है कि जब नेत्रों से स्नेह निचुड़ा पड़ता है, तब रूखे वचनों का एतबार नहीं है । जब प्रेमी प्रत्येक स्थान में छाया की भाँति प्रतिबिंबित है,तब वह जीवनाधार दूर कहाँ रहा ?

अरिकै वह आजु अकेले गई खरिकै हरि के गुन रूप लुडी, उनहूँ अपनो पहिराय हरा मुसक्यायकै गायकै गाय दुही; कबि देव कहो किन कोई कछू, तब ते उनके अनुराग छुही, सब ही सों यहै कहै बाल-बधू यह देखुरी माल गुपाल गुही।

अरिकै = अड़ करके । लुही = लुभी। खरिकै = जहाँ गाएँ और ग्वाल एकत्र हों, वह स्थान ।

'खरक'-शब्द हिंदी के कोश में है । इसके माने गोशाला के हैं। चित दै चित ऊँ जित ओर सखी, तित नंदकिसोर कि ओर ठई, दसहू दिसि दूसरो देखति ना छबि मोहन की छिति माह छई; कबि देव कहाँ लौ कळू कहिए, प्रतिमूरति हा उनहीं की भई , ब्रजबासिन को ब्रज जानि परै नभयो बजरी ब्रजराजमई ॥१७६।।

  • लोट-पोट हुई ।

+ रँगी हुई।