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पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/१३२

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देव-सुधा

गोत-गुमान = कुल का अभिमान। कानि = मर्यादा । लटो (लटा )= न्यून (दुर्बल ) हुा । अनेरे = अन्यायी।

चरननि चूमि, छूवै छवानि है चकित देव, भूमिकै दुकूलन न घूमि करि घटि गयो;

कोरे कर • कमल करेरे कुच कंदुकनि खेलि-खेलि कोमल कपोलननि पटि गयो ।

ऐसो मन मचला अचल अंग-अंग पर, लालच के काज लोक-लाजहि ते हटि गयो;

लट मैं लटक लोइननि मैं उलटि करि त्रिवली पलटि काट-तटी माहि कटि गयो। ॥१८॥

मन के साथ नायिका के नख-शिख का वर्णन है।

नायक का मन चरणों को चूमकर, एँ ड़ियों को छूकर तथा दुकूलों में झूमने से चकित होकर भी वापस न हुआ, न उसकी अधिकाधिक अंग देखने की इच्छा घटी। अछूते कमल-समान हाथों तथा गेंदों के समान कड़े कुचों से खेल-खेलकर वह मुलायम गालों पर छा गया। छवानि = एँ ड़ियों को। लोइननि मैं लटि करि = आँखों को उलटा करके ( मग्न होकर )।

जीभ कुजाति न नेकु लजाति गनै कुल-जाति नबातबह्यो करै*, देव नयो हिय नेह लगाय बिदेह कि आँचन देह दह्यो करै; जीव अजान न जानत जान जो मैन अयान के ध्यान रह्यो करै, काहेकोमेरो कहावत मेरोजु पैमनमेरोन मेरो कह्यो करे॥१८॥ जान = ज्ञान । अयान (अजान ) = अज्ञान । बिदेह = कामदेव।

  • बात वहन करती ( कहती ) है ।