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पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/१३६

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देव-सुधा

देखे दुख देत चेत[] चंद्रिका[] अचेत करि,
चैन न परत चंद चंदन को टारि दै;
छीजन लगी है छबि, बीजन[] करै न बीर,
नीजन[] सुहात है सखीजन निवारि दै।
सोए सजि सेजन करेजन मैं सूल उठै,
जारि दै उसीर[] कुटी, रावटी उजारि दै;
फूँकै ज्यों फनी[] री फूल-माल को न नीरी करि,
एबीरी बरी ऐ जाति या बीरी बगारि दै॥१९६॥

एबीरी = ओ री, एरी। बगारि दै = फेक दे। रावटी = छोटा ख़ेमा या बँगला।

केलि के बगीचे लौं अकेली अकुलाय आई,
नागरि नबेली बेली हेरत हहरि परी;
कुंज-पुंज तीर तहँ गुंजत भँवर-भीर,
सुखद समीर सीरे नीर की नहरि परी।
देव तेहि काल गूँधि ल्याई माल मालिनि, सो
देखत बिरह-विष-ब्याल की लहरि परी;
छोह-भरी छरी-सी छबीली छिति माहिं फूल-
छरी के छुअत फूल-छरी-सी छहरि परी॥१९७॥

  1. चैत।
  2. चाँदनी।
  3. पंखा।
  4. निर्जन।
  5. ख़स।
  6. सर्प।