हहरि परी = दुःखित हो गई। नहरि परी = नहर उसके सामने बढ़ी। बिरह-बिष-ब्याल की लहरि परी = मानो विरह-रूपी विषैले सर्प-दंश से मूच्छित हुई है । छोह-भरी = प्रेम-भरी । फूल-छरी = फूलों की छड़ी। छहरि परी= हाथ -पाँव फैलाए हुए गिर पड़ी।
सूधे ही सिखाई कै सखीन समुझाई होती, देव स्यामसुदर के सौहे समुहाती क्यों ;
बिचार बिचारे बीच बैरी होते बंधु कत, बिरह की बेदन बिकल बिलखाती क्यों।
जगमगी जोन्ह ज्वाल-जालनि सों जारती क्यों, जमजाई। जामिनी जुगंत-सम जाती क्यों;
क्वैलहाई क्वैलिया की काल - ऐसी कूकै सुने, कौल की-सी कलिका कुअरि कुभिलाती क्यों ॥१६८
जमजाई जामिनी = काल-रात्रि । जुगंत = युगांत । क्वैलहाई = कोयला-सी काली । क्वैलिया = कोयल । कौल (कौंल) = कमल ।
बालम बिग्ह जिन जान्यौ न जनम-भरि, बरि-बार उठै ज्यों-ज्यों बरस बरफ राति ;
बीजन डुलावति सखीजन त्यों सीत हू मैं, सौति के सराप तन तानि तरफराति ।
देव कहै सासनि ही अँसुवा सुखात, मुख निकसै न बात ऐसी ससकी सरफराति ;
- सामने उपस्थित क्यों होती ।
+ मृत्यु ।