पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/१४४

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देव-सुधा आजु गोगलजू बाल-बधू सँग नूतन-नूतन कुज बसे निसि, जागर होत उजागर नैनन पाग पै पीरो पराग परी पिसि; चोज के चंदन खोज खुले जहँ ओछे उरोज रहे उर मैं घिसि, बोलत बात लजात-से जात हैं, आए इतौत चितौत चहूँ दिसि। जागर = जागरण । उजागर = प्रकट (उजियाले के समान प्रकट)। चोज = थोड़ा ( चमत्कार-पूर्ण उक्ति, जिससे लोगों का मनोविनोद हो। यहाँ चोज शब्द का अर्थ 'थोड़ा' होता है। शब्द-पारिजात- कोष में इस शब्द का अर्थ 'थोड़ा' लिखा भी है )। इतौत = इत, उत (इधर-उधर) करते हुए। (२४) उपालंभ मंजुल मंजरा पंजरी-सी ह मनोज के ओज सम्हारति चीरन, भूख न प्यास न नींद परै परी प्रेम अजीरन के जुर जीरन ; देव घरी-पल जात घुरी अँसुवान के नीर उसास-समीरन , वाहन जाति अहीरअहे तुम्हें कान्ह कहा कहौं काहू कि पीर न । दूती नायक ( श्रीकृष्ण ) के विषय में उपालंभ प्रकट करती हुई नायिका की वियोग-दशा का वर्णन करती है। पंजरी = पिंजड़ा । अाहन = लोहा । पूतना को पय पान करो मनु पून-नाते बिसवास वगाहतछ, देव कहा कहौं मातु-पिता-हित-बंधुन सो हित नीके निबाहता मानो पुत्र होने के नाते से उसके शरीर में विष के निवास- स्थान को खोजते हैं । सव्यंग्य कथन है ।