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पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/३७

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देव-सुधा


फैलि-फैलि, फूलि-फूलि, फील-फलि, हूलि-हूलि, झपकि-झपकि आई कु0 चहूँ कोद ते ;

हिलि-मिलि हेलिनु सौं केलिनु करन गई', बलिनु बिलोकि बधू ब्रज की बिनोद ते ।

नंदजू की पौरि पर ठाढ़े हे रसिक देव मोहनजू मोहि लीनी मोहनी बिमोद ते ;

गाथनि सुनत भूली सानि की, फूल गिरे, हाथनि के हानि ते, गोदनि के गोद ते ॥२६॥

हेलिनु सौं = हाव-सहित ; हेला एक हाव का नाम है । हूलि = ढकेल करके । बिमोद = विशेष आनंद । गाथनि = चरित्रों को।

अंबर अडंबर डमरु गरजत बारि बरसि-बरसि सोखै बरसै बिसालु है;

देव पल घरी जाम दोऊ हगा सेत-स्याम न्यारो एक-एक मदि खोलत उतालु है।

कौतुक त्रिबिध चहूँ चौहटे नचायो मीचु महि मैं मचायो चल अचलनि चालु है;

  • मेघ का शब्द डमरू के समान है।

+ सूर्य-चंद्र दोनो आँखें रात-दिन करते हैं।

  • 'उतालु' माने 'जल्दी-जल्दी' अर्थात् आँखों का खोलना और

मूंदना जल्दी-जल्दी होता है। $अचल पदार्थ पृथ्वी के चलने से चल हैं । यह भी कहा जा सकता है कि पृथ्वी में चल तथा अचल, दो प्रकार के पदार्थों की रीति चलाई गई है।