पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४२
देव-सुधा

सीय के भाग के अच्छत अंकुर पुन्यनि के फल-फूल कढ़ाए , भूपन की मुख ओप मृगम्मद चंदन मंद हँसीन बढ़ाए ; देव बिधीस के जान के ईस मुनीसन आसिस-मंत्र पढ़ाए , श्रीरघुनाथ के हाथन पै मृगनैनिन नैन-सरोज चढ़ाए ।। ४ ५॥ समाभेद रूपक है।

अच्छत = विनाश न होनेवाला । बिधीस = ब्रह्मा तथा महादेव । ईस = प्रभु; रामचंद्र से प्रयोजन है।

सीता का भाग्य ही अक्षत है, पुण्यों के ही फल-फूल निकले हैं, राजाओं की मुख-प्रभा ही ( जो पराजय के कारण काली हो गई है) कस्तूरी है । मंद हास्य चंदन है, तथा मृगनैनियों के नेत्र ही कमल हैं, जो भगवान् के हाथों पर चढ़े हैं (अर्थात् स्त्रियाँ उनके विजयी हाथों को देख रही हैं ) ब्रह्मा और महादेव के ईश (राम ( समझे जाकर मुनीशों के द्वारा श्राशीर्वाद-मंत्र पढ़ाए गए।

सुख को सदन सुत-बधू को वदन देखि , दसरथ दसौ : दिसि सुजस बगारि कै;

सुदिन दिनेस-कुल दिनमनिजू को देखियत, दोप दीप दान दीपक उज्यारि के।

कवि राजा दशरथ के यश का वर्णन करता हुआ उनकी दान- शीलता का प्राधान्य प्रकट करता है । सीता की मुख-दिखरावनी के शुभ समय से संबंध है।

दिनेस-कुल = सूर्यवंश । दिनमणि = सूर्य, प्रयोजन दशरथ से है। दीप = (१) दीपक, (२) द्वीप । वारि के = जल से । दुरोदर = शंख।