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पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/५९

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देव-सुधा


नायक की अनुपस्थिति के कारण नायिका पावस का निरादर करती है। बड़ा सबल छंद है।

ऐबे की अवधि = आगमन का नियत समय । हील = कीचड़ । झाबर = दलदल । खादर = वह नीची ज़मीन, जिसमें वर्षा का पानी बहुत दिनों तक रुका रहता है । बरजु = रोक । नाचत मोर, नचावत चातिक, गावत दादुर धारभटी मैं, कोकिल की किलकार सुने बिरही बपुरे बिष घुटै घटी मैं अंबर नील घनी धनमाल सु भूमि बनी बनमाल तटी मैं , साँवरपीत मिले झलकै घन दामिनसे घन स्याम पटी मैं ॥६॥

विरह उत्पन्न करनेवाले पदार्थों तथा कारणों का वर्षा के संबंध में वर्णन है । बपुरे = बेचारे, अनाथ । 'बराक' (मं० )-शब्द से बना है । पटीपर्दा । घटी = छोटा घट ( शरीर ) ।

उतै तो सघन घन घिरि कै गगन, इतै बन-उपबन बन बनक बनाए हैं।

तसेई उलहि आए अंकुर हरित-पीत, देव कहै बिविध बटोहिन सुहाए हैं।

बोलैं इत मोर उत गरजै मधुर धुनि, मानौ मैन-भूप जग जीति घर आए हैं।

  • प्रारभटी एक वृत्ति है, जिसमें टवर्ग-पूर्ण प्रोज की विशेषता

रहती है। मेंढकों की टर-टर बोली में प्रारभटी-वृत्ति का उदाहरण कवि ने माना है।

+ वनों की माला (बहुत वनों) के तट में भूमि सुंदरी बनी है। धने काले पर्दे में साँवले और पीले बादल बिजली-से झलक रहे हैं।