कीच के बीच चुरियों के रटने से संसार में दुर्वासनाओं का बर
जो दिखलाया गया है, वह अगूढ़ व्यंजना का उदाहरण है । देहहू के दुख में सुख दूनो' यह वाक्य गूढ़ व्यं जना का उदाहरण है। पूरे छंद में आध्यात्मिक भावों का प्रकटीकरण व्यंग्य द्वारा हुआ है । तात्पर्य 'यह कि सांसारिक सुख में वास्तविक दुःख तथा सांसारिक दुख में वास्तविक सुग्व है।
"समाने वृक्षे पुरुषो निमग्नोऽनीशया शोचति मुह्यमानः ; जुष्टं यदा पश्यत्यन्यमीशमस्यमहिमानमिति वीतशोकः । यदा पश्यः पश्यते स्वमवणं कर्तारमीशं पुरुषं ब्रह्मयोनिम् , नदा विद्वान्पुण्यपापे विधूव निरंजनः परमं साम्यमुपैति ।"
निरंजन=निर्विकार ।
पीतम बष बिलास बिसेख सबिभ्रम भौंहन जोहनि जोऊ, रूप के भार धरे लघु भूषन औ' विपरीति हँसै किन कोऊ; भै रसरास हंसी रिस हू रस देवजू दूख सुखै सम होऊ तोहि भटू बनि आवत है रस भाव मुभाव में हाव दसोऊ ।१११॥
इस छंद में दसा हावों के उदाहरण दिए गए हैं। मंक्षिप्त गुण की यहाँ प्रधानता है।
"होहि संयोग सिंगार में दंपति के तन आय- चेष्टा जे बहुभाँति की ते कहिए दस हाय।"
(1) लीला-हाव पति के भूषण, वसनादि पत्नी द्वारा धारण करने से होता है। इस छंद में भी नायिका द्वारा पति का वेश धारण करने में लीला-हाव आया। (२) विलास-हाव गमनादि