पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/९३

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देव-सुधा

सोहति त्यौं कटि पीत पटी, मन मोहति मंद महा पग धारनि, सुंदर नंदकुमार के ऊपर वारिए कोटिकु मार-कुमारनि॥११६।। श्रीकृष्ण के कुमार-स्वरूप का वर्णन है। बिलोल = चंचल । मार- कुमारनि = कामदेव के लड़कों को। आओ पोट रावटी झरोखा झाँकि देखौ देव, देखिबे को दाउँ फेरि दूज दौस नाहिनै ; लहलहे अंग रंगमहल के अंगन में ठाढ़ी वह बाल लाल पग न उपाहिन । लोने सुख लचनि, नचनि नैन-कोरनि की उरति न और ठौर सुरति सराहिनै ; बाम कर बार हार अचल सम्हारै, करै कैयो छंद कंदुक उछारै कर दाहिनै ।। ११७ ॥ दूती नायक को नायिका का दर्शन कराती है । नायिका के उत्तम चित्र का वर्णन है। रावटी = तंबू, कनात । दाउँ = मौक़ा (दाँव)। छंद = खेल, छरछन्द। पैर में जूता नहीं है ( उपाहन = जूता)।

  • सुरति की सराहना दूसरे ठौर नहीं उरती (औरती, ध्यान

में माती)।