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काव्य-कला-कुशलता
तो पर वारौं उरबसी सुनु राधिके सुजान,
तू मोहन के उर-बसी, है उरबसी-समान ।
और भी लीजिए-
कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय ;
वह खाए बौरात नर, यह पाए बौराय ।
इसमें प्रथम कनक का अर्थ है सोना और दूसरे का अर्थ है
धतूरा।
(७) अंक के सामने बिंदु रखने से वह दशगुणा अधिक हो
जाता है, यह गणित का साधारण नियम है । बिंदी या बेंदी स्त्रियाँ
शृंगार के लिये मस्तक में लगाती हैं। सो गणित के बिंदु और
स्त्रियों की बिंदी दोनों के लिये समान शब्द पाकर विहारीलाल ने
मनमाना काव्यानंद लूट लिया । गणित के बिंदु-स्थापन से संख्या
दशगुणी हो जाती है, तो नायिका के बेंदी देने से 'अगनित' ज्योति
का 'उदोत' होने लगता है-
कहत सबै-बेंदी दिए ऑक दसगुनो होत;
तिय-लिलार बेंदी दिए अगनित होत उदोत ।
(८) तागा जब उलझता है, तो प्रायः टूट ही जाता है। चतुर
लोग. ऐसी दशा में तागे को फिर जोड़ लेते हैं। परंतु इस जोड़ा-
जोड़ी में गाँठ ज़रूर ही पड़ जाती है। बेचारा तागा टूटता है,
फिर जोड़ा जाता है और उसी में गाँठ भी पड़ती है-उलझना,
टूटना और जोड़-गाँठ सब उसी को भुगतनी पड़ती है। पर
यदि नेन उलझते हैं, तो कुटुंब के टूटने की नौबत आती है।
उलझता और है और टूटता और है। गाँठ अलग ही, दुर्जन
के हृदय में जाकर, पड़ती है, यद्यपि जुड़ने का काम किसी और
'चतुर-चित्त' में होता है । एक के मत्थे कुछ भी नहीं है । हगा
उलझते हैं, कुटुंब टूटता है, चतुर-चित्त जुड़ते हैं और दुर्जन
पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/११५
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