पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/१२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१२७
काव्य-कला-कुशलता

(१४) दोहे के चतुर्थ चरण में 'धर्म-वाचक-लुप्तोपमा स्पष्ट ही है।

(१५) शब्दालंकारों में छेकानुप्रास और यमक भी प्रकट हैं।

(१६) संपूर्ण दोहे में अद्भुत-रसवत् सामग्री होते हुए रसवत् अलंकारों के भेदांतरों में अद्भुत-रसवत् अलंकार भी सतसई-टीका- कारों ने स्वीकार किया है।

इस प्रकार उपर्युक्त दोहे में हमने १६ अलंकार दिखलाए हैं। गौण रूप से अभी और भी कई अलंकार इसमें निकल सकते हैं।