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देव और विहारी
उपस्थित होने पर विहारीलाल का वर्णन सभी हिंदी-कवियों से
अच्छा पाया जायगा । ऐसे भाव अभिव्यक्त करने में भी विहारीलाल
सर्व-श्रेष्ठ हैं।
(३) विरह-वर्णन में भी विहारीलाल सर्व-श्रेष्ठ हैं।
(४) सतसई के सभी दोहे उत्कृष्ट हैं । यह नहीं कहा जा
सकता कि अमुक दोहा अमुक दोहे से बढ़कर है।
(५) सूरदासजी को छोड़कर विहारीलाल के समान मधुर
ब्रजभाषा का प्रयोग करने में हिंदी का कोई दूसरा कवि समर्थ नहीं
हो सका है।
इस प्रकार भाष्यकार की राय में विहारीलाल, कविता के लिये
अपक्षित सभी प्रधान बातों में, देवजी से श्रेष्ठ हैं।
लेकिन इन निष्कर्षों से हम सहमत नहीं हैं। हमारी राय में
देवजी शृंगारी कवियों में सर्व-श्रेष्ठ हैं। अनेक स्थलों पर, भाव-समा-
नता में, विहारीलाल देव तथा अन्य कई कवियों से दब गए हैं।
देवजी का विरह-वर्णन भी विहारीलाल के विरह-वर्णन से किसी
प्रकार न्यून नहीं है। देवजी की भाषा विहारीलाल की भाषा से
कहीं अच्छी है । सूर, हित हरिवंश, मतिराम तथा अन्य कई कवियों
की भाषा भी विहारीलाल की भाषा से मधुर है । सतसई के सब
दोहे समान चमत्कार के नहीं हैं। हमारा कथन कहाँ तक युक्ति-युक्त
है, इसका प्रतिपादन प्रस्तुत पुस्तक में है।
___ यहाँ यह कह देना भी असंगत न होगा कि लेखक को दोनों में से
किसी भी कवि का पक्षपात नहीं है-विहारी और देव में जिसकी
काव्य-गरिमा उत्कृष्ट हो, उसी को उच्च स्थान मिलना चाहिए।
पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/१३८
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