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देव और विहारी
आपके नेत्र किसी और के रंग में रंगे हुए हैं और मेरी आँखें
आपके रंग में, इसी से दोनों की आँखें रंगीन हैं। 'रंग में रंगना'एक
सुंदर महाविरा है। इस महाविर के बल पर आँखों की सुखी का
जो पता दिया गया है, वह खूब 'रंगीन' और 'सुकुमार' है। विहारी
के दोहे में नेत्रों में जो लालिमा पाई है, वह दूसरे नेत्रों की लाह
पड़ने से पैदा हुई है, पर देवजी के छंद में यह रंग छाँह पड़ने से
नहीं आया है, बरन् सहज ही उत्पन्न हुआ है । अनुप्रास-चमत्कार
भी खासा है।