देव-विहारी तथा दास विहारी और देव दोनों ही महाकवियों की कविता का प्रभाव इनके परवर्ती कवियों की कविता पर पूर्ण रूप से पड़ा है । महाकवि दास देव और विहारी के बाद हुए हैं । दासजी बहुत बड़े आचार्य और उत्कृष्ट कवि थे। हम देव और विहारी के कवित्व-महत्त्व को स्पष्ट करने के लिये इस विशिष्ट अध्याय द्वारा दासजी की कविता पर उनका जो प्रभाव पड़ा है, उसे दिखलाते हैं- १-विहारी और दास कविवर विहारीलाल एवं सुकवि भिखारीदास उपनाम 'दास' इन दोनों ही कवियों की प्रतिभा से मधुर ब्रजभाषा की कविता गौरवा- न्वित है । विहारीलालजी पूर्ववर्ती तथा दासजी परवर्ती कवि हैं। विहारीलाल की दोहामयी सतसई का जैसा कुछ अादर है, वह विदित ही है। उधर दासजी के 'काव्य-निर्णय'-ग्रंथ का अध्ययन भी थोड़ा नहीं होता। विहारीलालजी कवि हैं, आचार्य नहीं ; पर दासजी कवि और प्राचार्य दोनों ही हैं। दोनों ही कवियों ने शृंगार-रस का सत्कार किया है। दासजी जिस प्रकार परवर्ती कवि हैं, उसी प्रकार काव्य- प्रतिभा में भी उनका नंबर विहारीलाल के बाद माना जाता है। कुछ लोग शृंगारी कवियों में प्रथम स्थान विहारीलालजी को देते हैं और दूसरे स्थान पर दासजी को बिठलाते हैं; पर कुछ विद्वान् ऐसे भी हैं, जो श्रृंगारी कवियों में देवजी को सर्व-शिरोमणि मानते हैं और दासजी का नंबर केशव, विहारी, मतिराम तथा सेनापति आदि के बाद बतलाते हैं । दासजी ने अपने पूर्ववर्ती कवियों के भावों को निस्संकोच होकर अपनाया है। इस बात को
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