देव और विहारी
उपस्थित किए । संयोग-दशा में कवि के वर्णन करने के ढंग को
देखकर पाठक यह बात बखूबी जान सकते हैं कि वियोग-दशा में
उसी की वर्णन-शैली कैसी होगी। वियोग-कुशल कवि के वियोग-
संबंधी छंद उद्धत हैं तथा संयोग-कुशल के संयोग-संबंधी।
छोटे छंद में आवश्यक बातें न छोड़ते हुए, उक्ति कैसे निभाई
जाती है, यह चमत्कार विहारीलाल में है तथा बड़े छंद में, अनेक
परंतु भाव और भाषा के सौंदर्य को बढ़ानेवाले कथनों के साथ, भाव
विकास कैसे पाता है, यह अपूर्वता देवजी की कविता में है। विहारी-
बाल की कविता यदि जूही या चमेली का फूल है, तो देवजी की.
, कविता गुलाब या कमल-सुमन है। दोनों में सुवास है। भिन्न-भिन्न
रुचि के लोग भिन्न-भिन्न सुगंध के प्रेमी हैं । रसिक, पारखी जिस
सुगंध को उत्तम स्वीकार करें, वही आमोद-प्रमोद का कारण है।
ऊपर उद्धत पाँचों दोहों में 'बतरस', 'नटि', 'तरौंस', 'खरौहीं और
'नीठि' शब्दों के माधर्य पर ध्यान रखने के लिये भी पाठकों से
प्रार्थना है । गुणाधिक्य, अलंकार-बाहुल्य, रस-परिपाक एवं भाव-
चमत्कार कविता-उत्तमता की कसौटी रहनी चाहिए । विषमता से
कवि की उक्ति में कोई भेद नहीं पड़ता बरन् परीक्षक को सम्मति
देने में और भी सुविधा रहती है, क्योंकि उसको पद्य के यथार्थ
गुणों पर न्याय करना होता है । साम्य उपस्थित होने पर तुलना-
समस्या निर्णय को और भी जटिल कर देती है। इन्हीं कारणों
से पहले विरुद्ध भावों के उदाहरण देकर हम अब बाद को भाव-
सादृश्य का निदर्शन करते हैं।
२-समतामयी
विहारी और देव के पधों में अनेक स्थलों पर भाव-सादृश्य पाया
जाता है । कहीं-कहीं पर तो शब्द रचना भी मिल जाती है। पर
दोनों ने जो बात कही है, अपने-अपने ढंग की अनूठी कही है। यह
पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/२२८
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