भाषा २४७ तो मुख्य भाव तक पाठक को और भी जल्दी पहुँचा देते हैं। भाषा का एक गुण माधुर्य भी है । जिस समय कानों में मधुर भाषा की पीयूष-वर्षा होने लगती है, उस समय श्रानंदातिरेक से हृदय द्रवित हो जाता है । पर 'श्रुति-कटु'-वर्ण-शन्य मधुर भाषा, व्यापक रूप से, सभी समय और सभी अवस्थाओं में समान आनंद देनेवाली नहीं कही जा सकती। प्रचंड रण-तांडव के अवसर पर तो ओजस्विनी कर्ण-कटु शब्दावली ही चमत्कार पैदा करती है वहीं एक विशेष आनंद की सामग्री है। उत्तम भाषा के अधिकाधिक नमूने सत्काव्यों में सुलभ हैं । एक समालोचक का कथन है कि कविता वही है, जिसमें सर्वोत्तम शब्दों का सर्वोत्तम न्यास हो ( Poetry is the best words in their best orders)। भाषा-सौंदर्य का एक नमूना लीजिए- "हौं भई दूलह, वै दुलही, उलही सुख-बेलि-सी केलि घनेरी ; मैं पहिरो पिय को पियरो, पहिरी उन री चुनरी चुनि मेरी । "देव” कहा कहो, कौन सुनै री, कहा कहे होत, कथा बहुतेरी : जे हरि मेरी धरै पग-जेहरि, ते हरि चेरी के रंग रचे री।" लेखक और कवि, दोनों ही के लिये उत्तम भाषा की परमावश्य- कता है। उनकी सफलता के साधनों में उत्तम भाषा का स्थान बहुत उँचा है । साधारण-सी बात भी उत्तम भाषा के परिच्छद में जग- मगा उठती है। किंतु उत्तम भाषा लिख लेना हँसी-खेल नहीं है। इसके लिये प्रतिभा और अभ्यास, दोनों ही अपेक्षित हैं। फिर भी अनवरत परिश्रम करने से, वैसी कुछ प्रतिभा न होते हुए भी, अभ्यास द्वारा उत्तम भाषा लिखी जा सकती है। कविवर विहारीलाल एवं देव दोनों ने मधुर 'ब्रजबानी' में कविता की सरस कहानी कही है । किसकी 'बानी' विशेष रसीली तथा
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