परिशिष्ट
इन्हीं दिनों यहाँ के शस्य-श्यामल मैदानों में उसके लिये पर्याप्त
भोजन-सामग्री मिलती है। ऑक्टोबर, नवंबर, दिसंबर और
जनवरी-ये चार मास इसे प्रवास में लग जाते हैं । शिकारियों
को यह बात बहुत अच्छी तरह मालूम है और वे इन्हीं दिनों
इस तथा इस जाति के अन्य पक्षियों का जी-भर शिकार खेलते
हैं। इन महीनों में जिधर देखिए, इस जाति के मुंड-के-झुंड पक्षी
विचित्र प्रकार का शब्द करते हुए जाते दिखाई पड़ते हैं।
फरवरी-मास के लगभग इन्हें अपनी जन्म-भूमि फिर याद
आती है। यह इनका जोड़ा खाने का समय है। निश्चित समय पर
वे झुंड-के-झुंड उत्तर दिशा की ओर जाते दिखाई पड़ते हैं, और
फरवरी तथा मार्च में इनका शिकार करने के लिये शिकारियों को
नेपाल तथा तराई में जाना पड़ता है। हिमालय के उत्तरी तथा
दक्षिणी ढाल तथा और भी उत्तर के प्रदेश इनके अंडे देने के स्थान
हैं। इन स्थानों के निवासियों की तो रोज़ी इन्हीं के अंडों पर
निर्भर है । ये लोग ऐसे स्थानों का निश्चित पता रखते हैं, और
समय पर जाकर अंडे जमा कर लाते हैं।
चक्रवाक के विषय में यह प्रसिद्ध है कि इसका जोड़ा रात को
बिछड़ जाता है और दिन को फिर एकत्र हो जाता है । बहुत खोज
करने पर भी इस जनश्रुति का उद्गम हम न जान सके । जान पड़ता
है, इस कथन में सत्य का अंश बहुत कम अथवा नहीं ही है। कई
अनुभवी चिड़ीमारों तथा शिकारियों से भी हमने इस विषय में पूछा।
सबने एक स्वर से इस लेख की बातों का समर्थन किया।
नवलविहारी मिश्र बी०एस-सी०
७-विहारी और उनके पूर्ववर्ती कवि
व्रजभाषा काव्य के गौरव कविवर विहारीलाल को हिंदी
साहित्य-संसार में कौन नहीं जानता । हिंदी-कविता का प्रेमी
पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/३०७
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