भाव-सादृश्य प्रायः देखा जाता है कि कवि लोग अपने पूर्ववर्ती कवियों के भावों का समावेश अपने काव्य में करते हैं। संसार के बड़े-से-बड़े कवियों ने भी अपने पूर्ववर्ती कवियों के भावों को निस्संकोच अपनाया है । कवि-कुल-मुकुट कालिदास ने संस्कृत में, महामति शेक्सपियर ने अँगरेज़ी में, तथा भक्क-शिरोमणि गो. तुलसीदासजी ने हिंदी-भाषा में अपना जो अनोखा काव्य रचा है, उसमें अपने पूर्ववर्ती कवियों के भाव अवश्य लिए हैं। अध्यात्मरामायण, हनुमबाटक, प्रसन्नराघव नाटक, वाल्मीकीय रामायण, श्रीमद्भा- गवत तथा ऐसे ही अन्य और कई ग्रंथों के साथ श्रीतुलसीदास की रामायण पदिए, तो शंका होने लगती है कि इन सुकवि-शिरोमणि ने कुछ अपने दिमाग से भी लिखा है या नहीं ? एक अँगरेज़- समालोचक ने, महामति शेक्सपियर के कई नाटकों की पंक्तियाँ गिन डाली हैं कि कितनी मौलिक हैं, कितनी यथातथ्य, उसी रूप में, पूर्ववर्ती कवियों की हैं तथा कितनी कुछ परिवर्तित रूप में पर्व में होने- वाले कवियों की कविता से ली गई हैं । शेक्सपियर का "हेनरी षष्ठ" बहुत प्रसिद्ध नाटक है। इसमें कुल ६०४३ पंक्तियाँ हैं । इनमें से १८६६ पंक्तियाँ ऐसी हैं, जो शेक्सपियर की रचना हैं। पर शेष या तो सर्वथा दूसरों की रचना हैं या शेक्सपियर ने उनमें कुछ काट-छाँट कर दी है। हिंदी के किसी समालोचक ने ठीक ही कहा है कि "अपने से पूर्व होनेवाले कवियों के भाव अपनाने का यदि विचार किया जाय, तो हिंदी का कोई भी कवि इस दोष से अछूता न छूटेगा । कविता-आकाश के सूर्य और चंद्रमा को गहन लग
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