१२ देव और विहारी एक सुकुमार अबला को वैसी ही दशा में देखकर होगी । शंकर की तपस्या की अपेक्षा पार्वती की तपस्या में विशेष चमत्कार है । सो 'दृग-मलंग' से 'जोगिनी अँखियाँ' विशेष सहानुभूति की पात्री हैं । उनका कष्ट-सहन देखकर हृदय-तल को विशेष प्राघात पहुँचता है। (२) योग की सामग्री सोरठे से घनाक्षरी में अधिक है। (३) घनाक्षरी सोरठे से पढ़ने में मधुर भी अधिक है । कौड़ा' शब्द का प्रयोग ब्रजभाषा की कविता के माधुर्य का सहायक नहीं है, इससे 'फटिकमाल' अच्छा है। (४) ब्रजभाषा की कविता में हिंदू-कवि के मुंह से 'मलंग' की अपेक्षा योगिनी' का वर्णन अधिक मनोमोहक है। (५) कथन-शैली अोर काव्यांगों की प्रचुरता में भी घनाक्षरी आगे है। निदान यदि परवर्ती कवि ने पूर्ववर्ती के भाव को लिया भी हो, नो उसने उसको फिर से गलाकर एक ऐसी मूर्ति बना दी है, जो पहले से अधिक उज्वल है, अधिक मनोहर है, अधिक सुंदर है। साहित्य-संसार में ऐसे कवि की प्रशंसा होनी चाहिए, न कि उसे चोर कहकर बदनाम किया जाय । सारांश कि ऐसे भावापहरण को सौंदर्य-सुधार का नाम देना चाहिए। उपर्युक्त तीन उदाहरणों द्वारा हमने यह दिखलाया कि कविता में चोरी किले नहीं कहते हैं ? अव आगे हम दो उदाहरण ऐसे देते हैं, जिनमें परवर्ती कवि को हम पूर्ववर्ती कवि के भावों का चोर कहंगे। चोर कहने का कारण यह है कि दूसरे का भाव अपनाने का उद्योग तो किया गया है, पर उसमें सफलता नहीं प्राप्त हो सकी। सौंदर्य-सुधार की कौन कहे सौंदर्य-रक्षा का काम भी नहीं चन पड़ा । पर इससे कोई क्षणमात्र के लिये भी यह न
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