पृष्ठ:दो बहनें.pdf/१०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
दो बहनें

थी, इस चित्र को देखकर शशांक खूब मज़ाक उड़ाएगा। तो भी ऊर्मि उसके मज़ाक से एकदम कुण्ठित नहीं होगी, बिल्कुल नहीं झेंपेगी। यही उसका प्रायश्चित है। दीदी के घर वह इस बात को दबा देती थी कि नीरद के साथ उसका विवाह होगा। दूसरे लोग भी इस प्रसंग को नहीं उठाते थे क्योंकि वह सभी को अप्रिय था। आज मुट्ठी बाँधकर ऊर्मि ने स्थिर किया कि अपने सब व्यवहारों में इस प्रसंग की घोषणा वह ज़ोर के साथ ही किया करेगी। एंगेजमेंट ( मँगनी ) की अंगूठी को कुछ दिनों से उसने छिपा रखा था। निकालकर आज उसे धारण किया। अँगूठी निहायत कम दाम की थी,--- नीरद ने अपनी ईमानदारी-भरी ग़रीबी के गर्व से ही इस सस्ती अँगूठी का दाम हीरे से भी अधिक बढ़ा दिया था। भाव यह था कि 'अँगूठी के दाम से मेरा दाम नहीं निश्चित होता, मेरे दाम ही से अँगूठी का दाम निश्चित होता है।'

इस प्रकार यथासाध्य अपना संशोधन करने के बाद ऊर्मि ने लिफ़ाफा खोला।

चिट्ठी पढ़कर हठात् उछल पड़ी। नाचने की इच्छा हुई पर नाच का उसे अभ्यास नहीं था! बिस्तर पर

९५