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दो बहनें

"यदि बदला ही तो तुम्हें इससे क्या, जीजाजी?"

"सवाल का सही जवाब दूंँ तो तुम्हारा अहंकार बढ़ जायगा इसीलिये तुम्हारी भलाई के लिये चुप रहता हूँ। पर सोचता हूँ कि इस आदमी का गंडस्थल तो कम नहीं है---अंग्रेज़ी में जिसे कहते हैं चीक।"

ऊर्मि के मन से एक बड़ा भारी बोझ उतर गया---बहुत दिनों का बोझ। छुटकारे के आनन्द में वह ऐसी विह्वल हुई कि कुछ तै हो नहीं कर पाई कि क्या करे, क्या नहीं। कामों को अपनी उस सूची को उसने फाड़कर फेंक दिया। गली में एक भिखमंगा भीख माँग रहा था, उसकी ओर खिड़की से अँगूठी ज़ोर से फेंक दी।

पूछा--"पेन्सिल से निशान बनाई हुई इन पुस्तकों को कोई फेरीवाला क्या ख़रीदेगा?"

"यदि न खरीदे, उसका क्या फलाफल होगा, सुनूँ भला!"

"कहीं इसमें पुराने ज़माने का भूत डेरा न डाले रहे! बीच-बीच में आधीरात को मेरे बिछौने के पास अँगुली उठाकर खड़ा हो जाय तो!"

"ऐसी आशंका हो तो फेरीवाले की प्रतीक्षा करने की ज़रूरत नहीं। मैं खुद ख़रीदूंँगा।"

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