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दो बहनें

फिर शशांक का ध्यान रखने के लिये कोई स्त्री रहेगी ही नहीं यह निगोड़ी अवस्था भी दीदी की सह्य नहीं हो सकती। दीदी ने उसे रोज़गार की बात भी समझा दी है, कहा है, यदि उनके प्रेम में बाधा पड़ी तो सारा कारबार चौपट हो जायगा। उनका मन अब तृप्त होगा तो कारबार में अपने आप तरतीबी आ जायगी।

शशांक का मन मतवाला हो गया है। वह एक ऐसे चन्द्रलोक में रहने लगा है जहाँ संसार की सारी ज़िम्मेवारी सुख-तन्द्रा में लीन है। आजकल रविवार के पालन में उसकी निष्ठा विशुद्ध ईसाई के समान अविचल हो गई है। एक दिन शर्मिला से जाकर बोला, "देखो, जूटवाले अंग्रेज़ों से उनका स्टीमलञ्च मिल गया है, कल रविवार है, सोचा है सबेरे ऊर्मि को लेकर डायमण्ड हार्बर हो आऊँ। शाम होने से पहले ही लौट आऊँगा।"

शर्मिला के वक्ष:स्थल की शिराओं को जैसे किसीने भरोड़ दिया, मारे पीड़ा के उसके मस्तक का चमड़ा सिकुड़ गया। शशांक को यह बात दिखी ही नहीं। शर्मिला ने केवल एक बार प्रश्न किया--"खाने-पीने की क्या व्यवस्था की है?" शशांक ने कहा---"होटल में ठीक कर लिया है।" एक

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