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दो बहनें

फल नहीं होता और आश्चर्य यह है कि शरीर भी नहीं टूटता। स्वास्थ्य का उद्वेग, विश्राम के अभाव का आक्षेप, आराम की तफ़सील की व्यस्तता इत्यादि नाना प्रकार की दांपत्यिक उत्कंठाओं की ज़बर्दस्ती उपेक्षा करके शशांक तड़के उठता है, सेकंडहैंड फ़ोर्ड गाड़ी को खुद हाँकता हुआ भोंपू बजाता निकल पड़ता है। कोई दो-ढाई बज घर लौटता है, डाँट खाता है और उसके साथ ही साथ बाक़ी खाने को भी जल्दी जल्दी हाथ चलाकर ख़त्म करता है।

एक दिन उसकी मोटर गाड़ी दूसरी गाड़ी से लड़ गई। खुद तो बच गया लेकिन गाड़ी को चोट आई। उसे मरम्मत के लिये भेज दिया। शर्मिला चिन्तित हो उठी। भर्राए हुए गले से बोली, "आज से तुम खुद गाड़ी नहीं चला सकोगे।"

शशांक ने हँसकर उड़ा दिया, कहा, “दूसरे के हाथ का ख़तरा भी एक ही जाति का दुश्मन है।"

एक दिन मरम्मत के काम की जाँच करते समय जूते को छेदकर टूटे पैकिंग बाक्स का कोई कीला उसके पैर में घुस गया, अस्पताल जाकर बैंडेज बँधाया और धनुष्टंकार

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