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दो बहनें

पुरुष अपने अदृष्ट के साथ नित्य जूझता रहता है, उसके कठोर मार्ग में यदि स्त्रियों का कोमल बाहुबन्धन विघ्न उपस्थित करने आवे तो निश्चय ही वह उसे निर्मम भाव से छिन्न कर देगा! इस निर्ममता को शर्मिला ने भक्ति-पूर्वक स्वीकार कर लिया। फिर भी बीच-बीच में उससे रहा नहीं जाता। जहाँ हृदय के आकर्षण को कोई अधिकार नहीं, वहाँ भी वह अपनी करुण उत्कण्ठा ले जाती, चोट खाती, परन्तु इस चोट को प्राप्य समझकर व्यथित चित्त से रास्ता छोड़कर लौट आती। जहाँ उसकी अपनी गति-विधि अवरुद्ध थी वहाँ देवता को पुकारकर कहती, 'तुम अपनी दृष्टि रखना।'

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