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नीरद

जिस समय इस परिवार की समृद्धि बैंक में जमा किए हुए रुपयों पर सवार होकर छः अंकों की संख्या की ओर दौड़ चली थी उसी समय शर्मिला को किसी दुर्बोध्य व्याधि ने धर दबाया, उठने-बैटने की शक्ति भी न रही। यह बता देने को ज़रूरत है कि इस बात को लेकर मग़ज़ खपाने की क्या ज़रूरत पड़ गई।

राजाराम बाबू शर्मिला के पिता थे। बैरीशाल ज़िले की ओर और गंगा के मुहाने पर उनकी कई बड़ी जमींदारियाँ थीं। इसके सिवा शालीमार के घाटवाले जहाज़ बनाने के रोजगार में भी उनका शेयर था। उनका जन्म पुराने ज़माने की सीमा पर और इस काल के ही हुआ था। कुश्ती में, शिकार में, लाठी चलाने में उस्ताद थे। पखावज बजाने में उनका नाम था। मर्चेन्ट आफ़ वेनिस, जुलियस सीज़र और हैमलेट से दो चार पन्ना कंठस्थ बोल जा सकते थे। मेकाले की अंग्रेज़ी उनका आदर्श थी। बर्क की वाग्मिता पर मुग्ध थे।

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