किया। अत्यन्त गंभीर से अंग्रेज़ी भाषा में कहा था,'देखो तुम अपने बड़े भैया की मृत्यु को अपना सारा जीवन देकर सार्थक करने का भार ले चुकी हो। इसी बीच क्या तुम उसे भूलने लगीं?'
सुनकर ऊर्मि को बड़ा कष्ट हुआ। सोचने लगी, 'इस आदमी की अन्तदृर्ष्टि कितनी असाधारण है। सचमुच ही तो मेरी शोक-स्मृति की प्रबलता कम होती आ रही है--मैं स्वयं यह समझ नहीं सकी। धिक्कार है। इतनी चपलता है मेरे चरित्र में!' वह सावधान होने लगी। कपड़ों से शोभा का आभास तक दूर कर दिया। साड़ी मोटी हुई। उसके सभी रंग दूर हो गए। आलमारी में जमे रहने पर भी चाकलेट खाने के लोभ को उसने छोड़ दिया। अपने मुँहज़ोर मन को ख़ूब कसकर संकीर्ण सीमा में बाँधने लगी, शुष्क कर्तव्य के खूँटे के साथ। दीदी ने तिरस्कार किया। शशांक ने नीरद को लक्ष्य करके जिन विशेषणों की झड़ी लगा दी, उनकी भाषा शब्दकोष के बाहर को उग्र परदेसी थी। सुश्राव्य तो ज़रा भी नहीं थी।
एक जगह नीरद के साथ शशांक का मेल है। शशांक का गाली देने का आवेग जब तीव्र हो उठता है तो उसकी