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दो बहनें

नीरद ने उपसंहार में कहा, "जहाँ तुम्हारा अपना स्वभाव प्रश्रय न पावे वहीं तुम्हें रहना चाहिए। मैं अगर नज़दीक रहता तो कोई चिन्ता नहीं थी क्योंकि मेरा स्वभाव तुमसे एकदम उल्टा है। तुम्हारा मन रखने के लिये उसे एकदम मिट्टी में मिला देने का काम मुझसे कभी भी नहीं हो सकता।"

ऊर्मि ने सिर झुकाकर कहा, "आपकी बात सदा याद रखूँगी।"

नीरद ने कहा, "मैं तुम्हारे लिये कुछ किताबें रख जाना चाहता हूँ। जिन अध्यायों पर मैंने निशान लगा दिए हैं उन्हें विशेष रूप से पढ़ना, आगे चलकर काम आएगा।"

ऊर्मि को इस सहायता की ज़रूरत थी, क्योंकि इधर उसके मन में बीच-बीच में आशंका होने लगी थी। सोचा करती; 'शायद पहले के उत्साह की झोंक में मैं ग़लती कर बैठी हूँ। शायद डाक्टरी मेरे अनुकूल नहीं पड़ेगी।'

नीरद को निशान लगाई हुई किताबें उसके लिये कठोर बन्धन का काम करेंगी, उसे धारा के विरुद्ध खींच ले चलेंगी। नीरद के चले जाने के बाद ऊर्मि अपने ऊपर और भी कठिन अत्याचार करने लगी। कालेज जाती,

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