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दो बहनें

अपने ही को तिरस्कार करके कहती, बंगाली की अंग्रेज़ी में कोई त्रुटि हो तो उसे लेकर नुक्ताचीनी करना स्नाबरी है।

देश में रहते हुए आमने-सामने बैठकर जब नीरद सदुपदेश दिया करता तो गौरववश उसकी भावभंगी गम्भीर हो उठती। जितना कानों से सुनाई देता उतने से अंदाज़ में उसका वज़न भारी होता, लेकिन लंबी चिट्ठी में अन्दाज़ की गुंजाइश नहीं होती। कमर कसे हुई बड़ी-बड़ी बातें हल्की हो जाती, मोटी आवाज़ से ही वक्तव्य विषय की कमी प्रकट हो जाती।

नीरद का जो भाव नज़दीक रहते समय बर्दाश्त हो गया था वही दूर से उसे सबसे अधिक तकलीफ़ देता। यह आदमी हँसना एकदम जानता ही नहीं! चिट्ठियों में सबसे अधिक इसका अभाव ही प्रकट होता। इस बात में शशांक के साथ उसकी तुलना उसके मनमें अपने-आप आ उपस्थित होती। तुलना का एक बहाना उस दिन अचानक उपस्थित हुआ। कपड़ा खोजते समय बक्स के नीचे से उसीका बुना हुआ एक अधबना जूता निकला। चार बरस पहले की बात याद आ गई। हेमन्त उन दिनों जीवित था। सब लोग दार्जिलिंग गए हुए थे। आनन्द

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